For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़ी उलझन है उलझी सी

नहीं जो हौंसला होता,
न तू काफ़िर हुआ होता |

सभी को भूल जाती मैं,
न कोई रतजगा होता |

न दी आवाज़ ही होती,
न कोई सिलसिला होता |

कहानी कौन कर पाता,
किसे कब कुछ पता होता |

ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |

न आती मौत इंसां को
न सोने को मिला होता |

बड़ी उलझन है उलझी सी,
न होती मैं तो क्या होता |

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nutan Vyas on January 23, 2012 at 5:02pm

आभार Kiran Arya जी!

Comment by Kiran Arya on January 23, 2012 at 12:36pm

ग़ज़ल तो बस ग़ज़ल होती,
न कोई ज़लज़ला होता |.......नूतन जी एक बेहद ही खूबसूरत ग़ज़ल..........बधाई.........

Comment by Nutan Vyas on January 23, 2012 at 11:05am

जी गणेश जी....आप अनुमति कहाँ माँग रहे हैं ....आदेश दीजिए!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 23, 2012 at 10:40am

नूतन जी यदि अनुमति हो तो उक्त सुधार किये गए मिसरे को आपकी ग़ज़ल में जोड़ दिया जाय |

Comment by Nutan Vyas on January 23, 2012 at 9:15am

आभार आशीष यादव जी एवं मोहिनी जी ! 

Comment by Nutan Vyas on January 23, 2012 at 9:14am
आपका हार्दिक आभार है गणेश जी... बहर की थोड़ी बहुत जो समझ है वह 
Sharad Tailang जी की वजह से है ! आपकी इस  टिप्पणी  से मेरी ग़ज़ल बेबहर होने से बच गई ! आभार  
Comment by आशीष यादव on January 22, 2012 at 9:28pm

bahut hi achchhi ghazal kahi hai aapne. 

sabhi she'r kaabil-e-daad hain.

badhai swikaar karen.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2012 at 9:10pm

आदरणीया नूतन व्यास जी, अपेक्षाकृत छोटी बहर के साथ कहन को संतुलित रखना आसान नहीं होता, यदि एक मिसरा छोड़ दिया जाय तो आपने अपनी इस ग़ज़ल में मुफाईलुन-मुफाईलुन को बहुत ही बढ़िया से निभाया है, ख्याल उम्दा, अब बात करते है बेबहर मिसरा की ..

न मौत आती जो इंसां को,

१२१२         २२२२       २
न सोने को मिला होता |

  यदि इस शेर को इस तरह पढ़ा जाय तो मेरे ख्याल से बात बन सकती है ..

न आती मौत इंसां को,

१२२२         १२२२
न सोने को मिला होता |

बहरहाल इस खुबसूरत प्रस्तुति पर दाद कुबूल करे आदरणीया |

Comment by mohinichordia on January 22, 2012 at 7:23am

मिर्ज़ा ग़ालिब की याद आ गई   "ये होता तो क्या होता " | अच्छी गज़ल |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service