ओबीओ का त्रि-दिवसीय महा-उत्सव अंक - 14 दिनांक 10 दिसम्बर 2011 को सम्पन्न हुआ.
आयोजनों में रचनाओं पर प्रतिक्रियाएँ / टिप्पणियाँ भी मूल रचनाओं की तर्ज़ पर पद्यात्मक रूप में देने की सुखद परिपाटी चल पड़ी है. यह सीखने-सिखाने के उद्येश्य के अंतर्गत ओबीओ द्वारा साहित्य के आंगन में एक अभिनव प्रयोग है. इस प्रक्रिया और परिपाटी की सामान्यतः भूरि-भूरि प्रंशसा हुई है.
हाँ, चर्चा अवश्य होती रहनी चाहिये कि इस तरह की प्रतिक्रिया-रचनाओं की आवृति और परिमाण क्या हों. कहने का आशय मात्र यही है कि मूल रचनाओं के प्रति पाठकों की रोचकता बनी रहे. इस संवेदशीलता के प्रति आग्रही होना बहुत ही आवश्यक है ताकि मूल रचनाओं का आलोक मद्धिम होता न महसूस हो.
चूँकि ओबीओ के आयोजनों का स्वरूप इण्टरऐक्टिव है अतः इस निमित्त सुधि पाठकों के मार्गदर्शी विचारों का सहर्ष स्वागत है.
सादर
--सौरभ--
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आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
हाइकू
बात है खास
नहीं दिल उदास
जिंदा है आस
छटी निराशा
खिली है रात रानी
महकी आशा
हम इंसान
बचा रहे ईमान
नहीं आसान
दिल जलता
दिशाहीन चलता
ये सुंदरता ?
तेरी मुरीद
तेरे दम पे जिंदा
मेरी उम्मीद
भाई जीता जा
शिव होना ज़रूरी ??
विष पीता जा
ऊंची उड़ान
चांदनी की चाहत
दिल नादान
प्रयास जारी
मंजिल दूर कहाँ ?
उठो लिखारी !!
ये हरारत
याद आई फिर से
वो शरारत
राह दिखा दो
भटके नहीं राही
दीप जला दो
हुआ विश्वास
बुझेगी यह प्यास
पिया हैं पास
तेरा ईमान
यह अकीदा ? वाह !
दिल कुर्बान !
आपका साथ
सदा सर पे हाथ
हम सनाथ
एक हैं दिल
दूर दूर रहती
हर मुश्किल
काहे उदास
याद कर वो पल
जिंदा हो आस
कहाँ अकेला ?
ओबीओ मंच पर
हाईकु मेला
एकादशी
बे-आस ?
देवी आशा है
जा पास
ऐ काश !
अँधेरा दौर
हो नाश
मीत रे !
हिम्मत कर
जीत रे !
पंखुड़ी
फूल हो गई
जो खिली
मित्रता
इस दौर में
लापता
उमंग
उठी दिल में
तरंग.
सुनो तो
आस कलियाँ
चुनो तो.
तांका
आशा निराशा
दोनों सगी बहने
कैसा तमाशा ?
कोई नहीं समझा
बड़ी कठिन भाषा
सदाबहार
बतलायो मुझको
कौन है यार ?
नई बहार हेतु
खिज़ां भी दरकार
राह कठिन
आनंद भी कहाँ है?
इसके बिन
लुत्फ़ देगा अँधेरा
रातों को तारे गिन
हार ज़रूरी ?
गुलों की चाहत है?
खार ज़रूरी
हार में जीत लगे
चमत्कार ज़रूरी
जान ये बात
गटक हलाहल
हो सुकरात
हो के देख शंकर
बने विष सौगात
घेरे निराशा
बचती नहीं आशा
रत्त्ती न माशा
नहीं कोई तमाशा
बड़ी सादी ये भाषा
सुख की बंसी
छेड़े नए तराने
आस का पंछी
राह नई दिखाए
ऊंचा उड़ता जाए.
हिम्मत जागे
नवजीवन उगे
मौत भी भागे
बेहतर ही होगा
घटेगा जो भी आगे
यह बेमानी
विजय पराजय
दुनिया मानी
दिल में उमंग हो
आशा रानी संग हो.
बाँट रौशनी
चीर डाल तीरगी
खिले चाँदनी
आस जगे किसी की
हरसू लुटा ख़ुशी
दोहे
मृगनयनी के हाथ पे, मेहंदी ज्यों खुशबाश
उतना ही खुशरंग ये, दोहा हे अविनाश !
शासन गहरी नींद में, धधक रहा माहौल
जन मानस का आज तो, रक्त रहा है खौल
फिर फैलेगा जगत में, गीता का संदेश
मुरली थामे हाथ वो, आएगा दरवेश
बापू तेरे देश में, गली गली है शोर
राजा बे-ईमान है, राजतंत्र है चोर
आशा नामक चांदनी, कर उसको उपयोग
सूरज पैदा कर नया, सदा रौशनी भोग
अंबर का अविनाश का, हर इक दोहा ख़ास
ओबीओ की शान हैं, दोनों अदब शनास,
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आदरणीय अम्बरीष श्रीवास्तव जी
हाइकू
आशा के पग
प्रफुल्लित हृदय
सुन्दर जग
बस दो पग
आशा और विश्वास
हो संतुलन
क्यों अनुराग?
यह राग विराग
अपना भाग
वाह भाईजी !
चमत्कारी है आस
जय हो जय
प्रकाश बिंदु
जीवनदायी आशा
नव जीवन
उन्नत भाव
दूर करें नैराश्य
जलते दीप !!
महकी साँस
हाँ! कुछ तो है ख़ास
दिल में आस !
मन में आस
तभी तो है विश्वास
स्थिर ईमान
ओबीओ साथ
यही सबसे ख़ास
जमा विश्वास
आस के पंख
हौसलों से उड़ान
शाबास दिल !
वो शरारत
भुलाये भी न भूले
बँधाये आस !
पिया के पास
भड़कती जो प्यास
लगाये आस
पाये सम्मान
ये आन बान शान
सच्चा ईमान
दे दें आशीष
आप ठहरे बीस
झुका है शीश
दिलों में प्यार
सुखमय संसार
छाई बहार..
आपका स्नेह
सभी नतमस्तक
मेहरबानी
बाँधी जो आस
महक गयी साँस
जमा विश्वास
आस लगाना
सपनों में खो जाना
ना घबराना !
पाये हैं ग़म
फिर क्यों मांगें हम
सच है मित्र !
अडिग रहे
कभी न छोड़ी आस
धन्य हैं आप !
सही कहा है
सदा से गुणकारी
आस-अमृत!
मस्त हाइकू
आस परिभाषित
बधाई मित्र !!
एकादशी
आभार!
प्रतिक्रिया में,
दिल से!
है आस
विश्वास संग
हर्षित
है आस
अपने साथ
खुशियाँ
गीत गा
आस जनित
फल खा
थी कली
आस लगन
जा खिली
गज़ब
बिलकुल सच
वाह जी
तरंग
मस्त मलंग
है संग
वाह वा
आस लगाये
ओ बी ओ
तांका
जय ओ बी ओ
हाइकू भी हर्षित
स्वागत है जी
थी आपकी प्रतीक्षा
पायी अमूल्य भेंट
थी अपेक्षित
प्रतिक्रिया तांके में
धन्यवाद जी
सुन्दर आया चित्र
पुनः आभार मित्र !
छोड़ निराशा
ब्याह ले यह आशा
ओ मेरे पाशा
ख़त्म हुआ तमाशा
नष्ट हुई हताशा..
थी परछाई
भागे छोड़ लुगाई
आस गंवाई
नजर नहीं आई
बुद्धू है वह भाई..
अपना लागे
प्रेम रस में पागे
फिर भी भागे
कच्चे क्यों यह धागे
आशा को रख आगे.
बाँट ये प्यार
बजा आस सितार
नेह दुलार
शीतल हो बयार
हर्षित हो संसार.
सही संदेश
आस पर कायम
अपना देश
बहुरुपिया वेश
कर्ज का परिवेश
मुक्तक
हाथ में हाथ लिए हैं तो महक साँस में है.
एक दूजे के लिए है जो तड़प पास में है.
बहुत हसीन हैं मुक्तक ये आपके दोनों-
ख्वाब में क्या वो मज़ा जो हुजूर आस में है..
बधाई! आपका मुक्तक बड़ा ही खूबसूरत है
बहुत अच्छे मेरे भाई यहाँ इसकी जरूरत है
मोहब्बत के गमों का बोझ अब लगता नहीं भारी
संजो लें आस को अपनी बड़ा शुभ यह मुहूरत है..
कुण्डलिया
आशा से संसार है, रखना दिल में आस
मंजिल होगी पास में, करिए सही प्रयास ।
करिए सही प्रयास, झोंकिये पूरी ताकत
मिले हाथ से हाथ, न टिक पाएगी आफत ।
कहें 'विर्क' कविराय,, हराती हमें हताशा
मत डालो हथियार, धार अमृत है आशा ।
संजय भाई आपके, छाये मत्तगयंद.
दोहा-रोला कुण्डली, मधुर-मधुर सब छंद.
मधुर-मधुर सब छंद, इन्हें मिल सभी सराहें.
उजियारे के मध्य, प्रीति अभिसिंचित राहें.
बहुत बधाई आज, आस की महिमा गाई.
पूरी होगी आस, आपकी संजय भाई..
योगी-भाई ने रचे, कुण्डलिया के छंद.
महकी-महकी साँस है, मन में परमानंद.
मन में परमानंद, रुचे पाँचों के पाँचों.
सारे हैं अनमोल, सभी को सब मिल बांचो.
अम्बरीष के साथ, हृदय ने आस लगाई.
छंद चाहिए और आपसे योगी-भाई..
दोहा रच डाला गज़ब, बना धमाके दार.
धानी चूनर आस की, ओढ़े यह संसार.
ओढ़े यह संसार, तभी तो जीवन गाये.
सुन्दर दिल का गाँव, हमें वह पास बुलाये.
रोले हैं सबरंग, सभी ने मन को मोहा.
कुण्डलिया अनमोल, छाप दे मन पर दोहा..
बलिहारी है आस की, सपने बुने हज़ार.
इन सपनों में झूलता, अपना घर संसार.
अपना घर संसार, सभी को लगता प्यारा.
आस और विश्वास, जगत में यही सहारा.
देख निराशा आज, छले बनकर दुखियारी.
आशा अपनी मीत, हुए उस पर बलिहारी ..
सारी दुनिया कह रही, जोर-जोर से चीख.
कुण्डलिया यह आपकी, देती सच्ची सीख.
देती सच्ची सीख, संवारे जीवन राहें.
आशा में विश्वास, इसे अपनाना चाहें.
सफल सदा हों काज, आप सब पर हों भारी.
पूरी हो सब आस, निराशा गुम हो सारी..
उजियारा हो आस का, अपनेपन की भोर.
सारी दुनिया स्वर्ग सम, सत्कर्मों का जोर.
सत्कर्मों का जोर , हताशा दिल की काली.
बहे स्नेह की धार, प्रीति की रीति निराली .
जले आस की ज्योति, दूर हो सब अँधियारा.
आशा में विश्वास, तभी जग में उजियारा ..
आशा अपनी जिन्दगी, आशा अपनी चाह.
आशा के आलोक में, पायें सच्ची राह.
पायें सच्ची राह, भले हों उस पर कांटे.
नहीं हमें परवाह, आस अपनापन बाँटे.
अम्बरीष क्यों आज, जिन्दगी देती झांसा.
उसे मना लें यार, रूठ जाये जब आशा..
आशा जी को याद कर, किया बहुत उपकार.
कुण्डलिया सुन्दर रची, भाई अरुण कुमार.
भाई अरुण कुमार, आप छंदों के ज्ञाता.
ओ बी ओ पर आप, मिले जैसे हो भ्राता.
अम्बरीष को खूब, रुची छंदों की भाषा.
पायें सबका प्यार, साथ जीवन में आशा..
आशा, आशा दे रहीं, मधुर-मधुर हैं गीत.
गूंजेगा जग में सदा, सुन्दर यह संगीत.
सुन्दर यह संगीत, दिलों में भाव जगाये.
प्रेरित अपने लाल, उन्हें भी राह दिखाये.
स्वर्गिक वह आवाज़, नहीं है जहाँ हताशा.
सप्तसुरों में गीत, गा रहीं देवी आशा..
दोहे
आशा निज से हम करें, पूरी हो तब आस.
स्वप्न महल साकार हो, करते रहें प्रयास..
लूट-तंत्र पर है चढ़ा, लोकतंत्र का खोल.
सत्य कहा प्रभु आपने, बिगड़ गया माहौल.
हम भी आशावान हैं, अभी बहुत कुछ शेष.
सुधरेंगें जब हम सभी, बदलेगा परिवेश..
रामराज्य में था कभी, लोकतंत्र चहुँ ओर.
लोकतंत्र तो नाम का, राजतंत्र का जोर..
आशा मन में धार कर, मुक्त करें सब रोग.
कर्मयोग सबसे बड़ा, अपनायें सब लोग ..
अतिसुन्दर दोहे रचे, ज्यों हों पुष्प पलाश.
बहुत बधाई आपको, भाई जी अविनाश..
मत्तगयंद सवैया
आस उजास सुहास प्रभास मनोहर रूप दिखावति आशा
भंग तरंग अनंग उमंग सुहावनि मोद मनावति आशा
नीति अनीति सुरीति कुरीति सबै संग प्रीति निभावाति आशा
अंतर द्वन्द हिया में चले फिर नेह के भाव जगावति आशा..
घनाक्षरी
आशा बने जो निराशा, केवल मिले हताशा
बने जिंदगी तमाशा, राह न दिखाई दे.
आए निराशा का दौर, आत्मबल कमजोर
जाएँ भला किस ओर, ठौर न सुझाई दे.
जब छा निराशा जाती, दर-दर भटकाती
रात दिन है सताती, कष्ट दु:खदाई दे.
संग आशा का न छोड़ो, निराशा से मुख मोड़ो
आत्मशक्ति को झंझोड़ो, फल सुखदाई दे..
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आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह ’सज्जन’ जी
तांका
लिखते जाएँ
हाइकु पे हाइकु
सीखते जाएँ
ओबीओ की जय हो
सब मिल के बोलो
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सौरभ पाण्डेय
हाइकू
नैराश्य हटा
आशाएँ अति घोर
जग सुन्दर !!
विडंबनाएँ.. .
जीवन अतुकांत.. .
तो यही सही.
क्या ही नियति.
वाह रे, जीव-राग !
चल जीता जा.. .
अनुमोदन
प्रयास का संबल
जा, बढ़ता जा !!
घुप्प अँधेरा
दूर.. . रौशनी-विन्दु
चल जीता जा !
उच्च भाव हैं
हाइकू भी जी उठे
भाई वाहवा !!!
भाव ग़ज़ब
वाहवा क्या बात है !!
बेजोड़ ढब.
कोमल उर
उत्प्रेरक दिल से
योगराज जी !!
सही विकास
दुरुस्त हों पंक्तियाँ
हो यों प्रयास !
योगी जो बोलें
कई आयाम खोलें
जीये रचना.. !!
एकादशी
बढिया !
यास विशिष्ट !!
पंक्तियाँ !!!
तांका
सुन्दर बोल
लगे जो अन्यतम
भाव सहेजे
पंक्ति रहे विशिष्ट
कोशिश को बधाई !!
कह-मुकरी
कविता-रचना-भाव भरे जो
पद्याभ्यास न रुके करे जो
सनद से डॉक्टर, किन्तु भावेश
का सखि प्रोफ़ेसर ? नहीं जी, बृजेश .. !!
दोहे
आस-निरास न तोल तू, इनकी चर्चा छोड़
कर्म किये जा, रे ! सतत, जीवन पाये मोड़
जनता जीना चाहती, लेकिन जीवन तिक्त
आँच धौंकती देखिये, उबल रहा है रक्त .. .
इतनी उन्नत बात कर, लिया हृदय ही मोल
मुरली और मयूर की, हो चर्चा दिल खोल .. .
खरी-खरी कवि कह रहे, दिखी हृदय में आग
चोर हुए सरताज हैं, जाग, देश ! रे, जाग!
योगी भाई खूब हैं, आवाहन की टेर
इससे उत्तम बात क्या, आशा से मनफेर
तीनों रंगों की छटा, लागी देखन जोग
रचना पर रचना हुई, तारी देवें लोग !
लगते दोहे आपके, मन का ’उभचुभ’ चित्र
सुन्दर भाव, सुकथ्य पर, सुनें ’बधाई’ मित्र !
कुण्डलिया
भाई योगी आपकी, कुण्डलियाँ उत्तेज
आशा औ’ विश्वास से, आप दिखें लबरेज
आप दिखें लबरेज, सुन्दर पद्य अनुशासी
दिखा नहीं नैराश्य, लगी हर रचना खासी
अद्भुत इनका शिल्प, कहन में बड़ी ऊँचाई
सदा रहें प्रभु आप, बने अपने ’बड़-भाई’ ॥
मुक्तक
मन में आशा-कोंपल, ले धड़कनों में प्यार को
ज़िन्दगी के प्रीत तुम, आओ रचें आधार को
बिजलियों की कौंध सी उठती है नस-नस में लहर
मूँद कर अपने नयन हम जी रहे संसार को
मत्तगयंद सवैया
आस लिये हम बाट तकें, कब संजय आयँ कहें, मन भावैं ।
भेज दिये, अति सुन्दर, तीन मनोहर, शुद्ध, रचाइ सुनावैं ॥
कागद रूप सु-भावन आज, गही रचना, अति सुन्दर गावैं ।
हार्दिक साधु, सुनो भइ संजय, सौरभ के मन-मान बढ़ावैं ॥
आज भया दिन मोहक, रोचक, चौचक रंग चुमावति आशा
साध रहे सुर टेर लगाइ भया मन छंद रिझावति आशा
धन्य हुए हम धन्य हुए पढ़ि ’दास कि माँ’ अस नावति आशा
पाठक आँखिन पाइ रहे मधु छंदन बूँद जिमावति आशा
छंदमुक्त
कहने-सुनने भर को है बस
जो कुछ है, तो अनुभव है.. .
एक भाव है हो जाने का, बस वो ही आशा अभिनव है !
उत्साहित ये हर क्षण करती --प्रेरक बातें, उन्नत भाषा
सही कहा है आप धरम ने पथ दुर्गम में सहचर आशा..
सही कहा है -
अँधियारी हो रात
साँझ हो रुकी-पिटी
या भोर रुँआसी
अपनी आँचल खोल, ओड़ती, मन भर देती,
करती संयत दे अदम्य दिलासा.. . प्यार हुलासा.. अह, आशा !!
अह ! .. आशा !!!
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आदरणीय अरुण कुमार निगम
कुण्डलिया
आशा पर संसार ही , टिका हुआ है यार
जिस पल आशा मिट गई, जीवन है निस्सार.
जीवन है निस्सार, हमारी बतिया मानो
आशा को ही सच्चा जीवन-साथी जानो.
कविवर विर्क की कुण्डलियों से हटे हताशा
सोलह आने सत्य कि अमृत धार है आशा.
योगराज ने रच दिये पाँच कुण्डलिया छंद
मानो हिय-जिय पुष्प से झरता हो मकरंद
झरता हो मकरंद,आस का रंग निराला
पचरंगी प्यालों में हौले-हौले डाला.
कल के कान में बात डाल दी अहा आज ने
पाँच कुण्डलिया छंद रच दिये योगराज ने.
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ये इस बात का प्रतीक है की हमारे बीच के साथी रचनाकार कितने मंजे हुए और परिपक्व हैं. सभी को हार्दिक साधुवाद !! और आपके इस संकलन स्वरुप योगदान को भी नमन !!
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महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
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