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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97 "विषय: "साधना''

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'साधना', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-97
"विषय: "साधना" 
अवधि : 29-04-2023 से 30-04-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
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6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफ़िर" जी।

आ.तेजवीर जी,लघुकथा के लिए बधाइयां लीजिए।भाषा में थोड़ी चुस्ती और कथा में कसावट जरूरी लगती है।यह मेरा मानना है।

हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

आदाब। विषयांतर्गत घर-घर की दास्ताँ व माँ/बाप की तपस्या और उनकी वृद्धावस्था के समय संतान के दायित्व पर बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह जी। संवादों की बोली सरल.शब्दों वाली सहज वाक्य रचना वाली कर.देने से.रचना का प्रभाव बढ़ सकता है मेरे विचार से। अंतिम संवाद लम्बा हो गया है। या तो इसे कसावट दी जाये या फ़िर छोटे कथनोपकथन में बदल दिया जाये, ऐसा लगता है।

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई. सादर 

खेल(शीर्षक:साधना)
उसकी साध थी कि एक बड़ा लेखक बने।उसने मन ही मन एक नामचीन लेखक को अपना गुरु मान लिया।गुरु की रचनाएँ पढ़ता। मनन करता।फिर लिखने लगा।उसकी लिखाई की शोहरत हुई।गुरु के कानों तक पहुँची। उन्होंने अपने घोषित शिष्य की रचनाओं के साथ उसकी कृतियों को परखा।खेल बराबरी का लगा।फिर उसकी तलाश हुई।
गुरुजी ने पूछा,"नाम?"
"शिष्य।"
"किसका?"
"गुरुश्रेष्ठ का।" उसने गुरुजी के चरण पकड़ लिए।
"मैं?गुरुश्रेष्ठ??" गुरुजी ने उतावली से पूछा।
"जी गुरुवर।" उसने कहा।
"पर मैंने तो तुम्हें कुछ सिखाया ही नहीं।फिर....?"
"मैंने आपसे ही सबकुछ सीखा है, गुरुवर।मेरे ध्यान में सर्वदा आप रहे। मैं लिखता रहा।सीखता रहा।लेखन को साधता रहा।" उसने भरे गले से कहा।
गुरुजी सन्न रह गए।
"खेल निर्णायक होना चाहिए।" उन्होंने सोचा,फिर बोले,
"ला मेरी गुरुदक्षिणा।"
"माँगिये प्रभु!"
"अपनी लेखनी दे मुझे।"
"मेरी साधना पूर्ण हुई, महामना।आपकी आप जानें।" कह उसने लेखनी गुरुजी को थमा दी।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

आपका आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

नमस्कार। विषयांतर्गत गुरू-शिष्य, साधना और गुरुदक्षिणा पर संयोग से इस गोष्ठी में यह दूसरी बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। //"खेल निर्णायक होना चाहिए।" उन्होंने सोचा,फिर बोले,// - इसे किसी बेहतर तरीक़े से लिखा जा सकता है, क्योंकि 'सोचना' बताया जा.रहा है। यह सोचते हुए बोले, .... कैसा रहेगा? 'लेखनी' से पाठक दो तरह के अर्थ लगा सकते हैं... पेन/क़लम अथवा तपस्या/साधना से अर्जित लेखन शैली/क्षमता। लेखक का आशय शायद दूसरे मतलब से है।

मुझे समापन शायद सही तरह से समझ नहीं आ पा रहा। सकारात्मकता है या नकारात्मकता या गुरुदक्षिणा की परिपाटी पर तंज? मार्गदर्शन चाहूँगा।

आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी। किसी की अर्जित क्षमता का हरण कभी सकारात्मक नहीं हो सकता।व्यक्ति मन में जो सोचता है,उसे कथन के रूप में इंगित करना कुछ अन्यथा नहीं होता।

शुक्रिया आदरणीय।

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