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मेरे युग की तस्वीर

सच यह है कि

अंधा होने के लिए नेत्रहीन होना कोई शर्त नहीं होती

वरना किसी युग में द्रौपदी कभी कहीं  नही रोती

 

बल्कि सच यह है कि

जब जब राजा अंधा होता ,पूर्ण अंध हो जाता काज 

क्या मर्यादा,वचन प्रतिज्ञा सब का सब कोरी बकवास

सच ही तो है कि

पाँच पतियों की भार्या थी वो ,आर्य  वंश कि आर्या थी वो

गृह लक्ष्मी वो हुई अवाक  सब थे सामने लुट गई  लाज

भीष्म मर्यादित राज सभा पर  नहीं उठी प्रतिरोध आवाज़

 

सच है तो यह  कि

युग ही का यह अंतर है कि आज आवाज़ें उठती हैं

सीता  हो या हो अहिल्या चीखें अब नहीं घुटती हैं

मूक कोख ने मूक जने थे अब उस ने चीत्कार जनी है

कटी जुबाँ तहरीर बनी है  मेरे युग की तस्वीर बनी है

................................

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 3, 2020 at 8:34pm

बहुत ही सारवान रचना के लिये बधाई आपको...

Comment by amita tiwari on November 3, 2020 at 3:49am

आ०समीर साहब 

सराहना के लिए शुक्रिया 

डा० विजय जी 

खुशी हुई की मेरे जज़्बातबात को समर्थन मिला  , सच बात तो यही है कि मूक रहना भी तो अपनी ज़ुबान से धोका ही तो है /

सादर 

अमिता 

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 2, 2020 at 4:06am

सच तो यह भी है कि धृष्टराष्ट्र की परम्परा भी कभी समाप्त या विलुप्त भी नहीं होती है। आपकी कविता में वज़न है , अच्छी है। बधाई। सादर।  

Comment by Samar kabeer on October 30, 2020 at 2:54pm

सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।

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