For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उल्फ़त पर दोहे :

उल्फ़त पर दोहे :

सब लिखते हैं जीत को, मैं लिखता हूँ हार।
हार न हो तो जीत का, कैसे हो शृंगार।।१

अद्भुत है ये वेदना, अद्भुत है ये प्यार।
दृगजल जैसे प्रीत का, कोई मंत्रोच्चार।।२

क्यों मिलता है प्यार को, दर्द भरा अंजाम।
हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम।।३

हर लकीर ज़ख्मी हुई, रूठ गए सब ख़्वाब।
आँखों की दहलीज पर,करते रक़्स अज़ाब ।।४

दस्तक देते रात भर, पलकों पर कुछ ख़्वाब।
तारीकी में ज़िंदगी, लगती हसीं किताब।।५


याद अमानत बन गयी, लफ्ज़ हुए लाचार।
चिलमन पलकों की हुई, अश्कों से गुलज़ार।।६

सुर्ख़ कपोलों पर हुई, सुधियों की बरसात।
नैनों का सपना बनी,अभिसारों की रात।।७

अमिट लेख तकदीर का,बनी मिलन की रात।
स्वप्न सभी ऐसे झरे, जैसे पीले पात।।८

पहने पलकें रात भर, सपनों के परिधान।
अच्छा अब लगता नहीं, अधरों को व्यवधान।। ९

अफ़सुर्दा सी भोर है, अफ़सुर्दा सी शाम।
उनकी उल्फ़त में मिला, अश्कों का ईनाम।।१०

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 415

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:25pm

आदरणीय  Dayaram Methani जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:25pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:24pm

आदरणीय  Samar kabeeriजी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Dayaram Methani on June 6, 2020 at 9:21pm

 आदरणीय सुशील सरना जी, अति सुंदर दोहा सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।

Comment by नाथ सोनांचली on June 5, 2020 at 1:46pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। अच्छे दोहे लिखे है। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजिएगा। बधाई स्वीकारें। सादर

Comment by Samar kabeer on June 5, 2020 at 12:27pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ उर्दू शब्दों में नुक़्ते लगा लें ।

 अंजाम। 
'हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम'

इस पंक्ति में 'हो जाते' की जगह "हो जाता" कहना उचित होगा ।

'उनकी उल्फ़त में मिला, अश्कों का ईनाम'

इस पंक्ति में 'ईनाम' ग़लत शब्द है,"इनआम" कर लें,मात्रा भार एक ही होगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service