For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘क्या कहा कालेज की ओर से ट्रिप में जा रही हो I साथ में लडके भी होंगे ?’- माँ ने पूछा I

‘हां होंगे, तो क्या ?  आजकल बहुतेरे उपाय हैं I आपकी नाक नहीं कटेगीI ‘

 (मौलिक / अप्रकाशित )

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 23, 2019 at 6:10am

आपकी कलम की खूबी है कि कम स कम शब्दों में बहुत कह लेती है, और इतना ही नहीं, भावपूर्ण और प्रभावशाली भी है।बधाई, भाई गोपाल नारायन जी।

Comment by Samar kabeer on September 19, 2019 at 11:47am

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,मैं भी जनाब बाग़ी जी से सहमत हूँ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2019 at 12:48pm

आ० बागी जी , आप इस पोस्ट पर आये , मैं ह्रदय से अनुग्रहीत हुआ आपका सम्मति से मैं  बिलकुल सहमत हूँ I आगे भी ऐसे ही मार्गदर्शन की उम्मीद  करता हूँ  I आपका बहुत- बहुत आभार I 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 12, 2019 at 9:40pm

लघुकथा में कल्पना का पुट काल और परिवेश के अनुसार दी जाती है, किन्तु यह यथार्थ की धरातल पर होने से लघुकथा की खूबसूरती बढ़ती है ।

यहाँ दो चीजें हैं, माँ द्वारा पूछा जाना और बेटी का जवाब।

माँ द्वारा किया गया संवाद यह दिखाता है कि वह परिवार सामान्य भारतीय परिवार है और उसमें बेटी द्वारा दिया गया तीक्ष्ण जवाब बिलकुल अप्रत्याशित लगता है । यदि बेटी का स्वभाव उस तरह का होता तो माँ कभी वैसा प्रश्न न करती और यदि माँ ऐसा प्रश्न कर रही है तो बेटी कभी ऐसा उत्तर न देती । 

हाँ, वही बात इशारों में कही जा सकती थी जैसे...

माँ आप चिंता न करों, आपकी बेटी समझदार है, जीन्स की पैकेट में रखी गोली को हाथ से दबाते हुए बोली ।

या कुछ और ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
21 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service