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दुश्मनी हमसे  निकाली  जाएगी ।
बेसबब इज्ज़त उछाली जाएगी ।।

नौकरी मत  ढूढ़  तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।

लग रहा है अब रकीबों के लिए ।
आशिकी साँचे में ढाली जाएगी ।।

चाहतें   अब  क्या  सताएंगी   उसे ।
जब कोई ख़्वाहिश न पाली जाएगी ।।

इश्क़ गर अंजाम  तक  पहुंचा नहीं ।
फिर कही उल्फ़त ख़यालीजाएगी।।

ऐ खुदा इक दिन तेरे दर पर तो ये ।
जिंदगी  बनकर  सवाली  जाएगी।।

इश्क़ पर कुछ तो भरोसा है मुझे ।
कैसे कह दूं बात खाली जाएगी ।।

यह छलकती आंखों से मय देखिए ।
कौन  से  प्याले  में  डाली जाएगी ।।

        - नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 19, 2019 at 1:44pm

गज़ल का सबसे जानदार शेर

नौकरी मत  ढूढ़  तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी ।।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 16, 2019 at 5:43pm

आ0 कबीर साहब वेहतरीन इस्लाह हेतु हार्दिक आभार और नमन।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 16, 2019 at 7:25am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

यह छलकती आंखों से मय देखिए ।
कौन  से  प्याले  में  डाली जाएगी ।।

Comment by Samar kabeer on July 14, 2019 at 11:17am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'नौकरी मत  ढूढ़  तू इस मुल्क में ।
अब तेरे हिस्से की थाली जाएगी'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।

'चाहतें   अब  क्या  सताएंगी   उसे'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'ज़िन्दगी कैसे सताएगी भला'

'ऐ खुदा इक दिन तेरे दर पर तो ये'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'ऐ ख़ुदा, इक दिन तेरे दरबार में'

'इश्क़ पर कुछ तो भरोसा है मुझे'

इस मिसरे को यूँ कर लें,गेयता बढ़ जाएगी:-

'इश्क़ पर अपने भरोसा है मुझे'

'यह छलकती आंखों से मय देखिए'

इस मिसरे में 'से' की जगह 'की' शब्द उचित होगा,ग़ौर करें ।

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