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गर्व ....

रोक सको तो
रोक लो
अपने हाथों से
बहते लहू को
मुझे तुम
कोमल पौधा समझ
जड़ से उखाड़
फेंक देना चाहते थे
मेरे जिस्म के
काँटों में उलझ
तुमने स्वयं ही
अपने हाथ
लहू से रंग डाले
बदलते समय को
तुम नहीं पहचान पाए
शर्म आती है
तुम्हारे पुरुषत्व पर
वो अबला तो
कब की सबला
बन चुकी ही
जिसे कल का पुरुष
अपनी दासी
भोग्या का नाम देता था
देखो
तुम्हारे पुरुषत्व का दम्भ
लाल रंग में रंगा
क़तरा क़तरा
ज़मीं पर गिरकर
किसी को लज्जाहीन
करने की लज्जा से
धरा के गर्भ में
अपने वज़ूद से
शर्मसार हो रहा है
किसी के नारीत्व को
वस्त्रहीन करने से
तुम अपनी कायरता का ही
परिचय दोगे
कभी किसी को
उसकी इज्ज़त का
आँचल ओढ़ा कर देखो
सच
उस दिन
नारी को
तुम पर गर्व 
और तुम्हें
अपने पुरुषत्व पर
अभिमान होगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 7:02pm

आदरणीय  Mahendra Kumar  जी सृजन को अपने बहुमूल्य समय दे कर अपनी प्रशंसा से उसे शोभित करने का तहे दिल से शुक्रिया।  आप का ये नुक्ता हमें बहुत भाया। इस सुंदर सुझाव का हार्दिक आभार।  मैं इसे अभी एडिट कर इस सृजन की सुंदरता बढ़ाता हूँ। हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2017 at 6:59pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , प्रस्तुति को अपनी दिलकश प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का दिल से शुक्रिया। आपके आने सृजन में जान आ जाती है। शर्मिंदगी की बात कहकर आप मुझे शर्मसार कर रहे हैं।  आपका दिल से आभार सर। 

Comment by Mahendra Kumar on May 4, 2017 at 7:48pm

आ० सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया कविता लिखी है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। प्रश्न की शक्ल में एक सुझाव : //तुम पर गर्व होता// क्या यहाँ "होता" को हटा देना बेहतर नहीं होगा? सादर।

 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 6:22pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,शर्मिंदा हूँ कि आपकी कविता पर हाज़िर होने में देर लगी,अहसास दिलाने का शुक्रिया,कभी कभी भूलवश ऐसा हो जाता है ।
बहुत सुंदर और वैचारिक कविता लिखी है आपने जो सोचने पर मजबूर करती है,बहुत ख़ूब वाह, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on May 1, 2017 at 6:38pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 1:55pm
आदरणीय सुशील जी आदाब, हमेशा की तरह यह रचना भी बड़ी प्रभावी है । सच है, नारी को तभी सम्मान मिलेगा जब उसे सशक्त बनाया जाएगा । ढेरों बधाईयाँ ।

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