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ग़ज़ल (हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है )

(मफ़ाईलुन-मफ़ाईलुन-फऊलॅन)

हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है |

ज़मीं पर कोई जन्नत ढूंढता है |

दगा फ़ितरत हसीनों की है लेकिन

कोई इन में मुरव्वत ढूंढता है |

समुंदर से भी गहरी हैं वो आँखें

जहाँ तू अपनी चाहत ढूंढता है |

मिलेगा तुझको असली लुत्फ़ गम में

फरह में क्यूँ लताफत ढूंढता है |

हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत

तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है |

सियासी लोग होते हैं फरेबी

कहाँ उन में सदाक़त ढूंढता है |

लगाएँ हम कहाँ तस्दीक़ दिल को

ये चेहरा खूबसूरत ढूंढता है |

.

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2017 at 8:47pm

मुहतरम नीलेश नूर साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ का
बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:30am

बहुत खूब ..
बधाई 

Comment by Mahendra Kumar on March 7, 2017 at 10:12pm
बहुत ख़ूब आ. तस्दीक़ जी। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2017 at 7:40pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ
का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी -

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2017 at 7:40pm

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ
का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --मशवरे का बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2017 at 7:36pm

मुहतरम जनाब रवि साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ
का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2017 at 7:35pm

मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाइ
का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी --
फरह ---खुशी , लताफत --मज़ा , नकहत-खुश्बू , सदाक़त --सच्चाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 7, 2017 at 3:28pm

आदरनीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है , सभी अशआर बेहद खूब हुये हैं , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत   -- इस मिसरे को ऐसे कहें तो भाव सही आयेगा -

ये हैं तो खूब, लेकिन कागज़ी हैं

तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है    --

Comment by Ravi Shukla on March 7, 2017 at 11:56am

बहुत बढि़या गजल कही आदरणीय तसदीक साहब हर शेर पर दाद हाजिर है । मुबारक

Comment by Mohammed Arif on March 6, 2017 at 10:51pm
वाह!वाह!!वाह!!!बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आली जनाब मोहतरम तस्दीक़ अहमद साहब ।

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