For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल 
मात्रिक (22)

संघर्षों के जीवन रण में अपना हिस्सा हार गया,
मान के मिथ्या इस आँगन को, कोई इस के पार गया. 
.
विद्वत्ता से श्रेष्ठ कहाई सत्कर्मों की पुण्याई,
अहँकार के फेर में रावण! तेरा जीवन सार गया. 
.
प्रश्न हमारे सच्चे थे पर उत्तर झूठे थे उनके,
जब से सच का बोध हुआ है, धर्मों का आधार गया. 
.
ईश्वर पूजा, अल्लाह पूजा, ख़ुद के तन को कष्ट दिए,
उस जीवन की आस में मानव, ये जीवन बेकार गया. 
.
ईश्वर तेरे साथ चलेगा बस साँसों के स्पंदन तक,
जिस पल “नूर” तू बुझ जाएगा, समझ तेरा संसार गया. 

निलेश "नूर"

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 1:26am
वाह-वाह वाह-वाह क्या बात है आद0 भाई नीलेश जी बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है। दिल से बधाई लीजिये।सादर
Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:30pm

गज़ल अच्छी बनी है। बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2016 at 10:13pm

ईश्वर और भगवान को अलग कीजिए न। फिर देखिए, देव !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2016 at 9:48pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर...आप की टिप्पणी की हमेशा प्रतीक्षा रहती है ...
अहंकार बार बार टाइपिंग में अहँकार हो रहा है, सुधार लेता हूँ ..
रही बात भगवन करने की तो पूरी ग़ज़ल उस एक के अस्तित्व ही को चुनौती दे रही है ..ऐसे में उसे संबोधित कैसे करूँ ..
मेरा मसअला तो मानव है ..
धर्म की आप की व्याख्या सही और व्यापक है ले वर्तमान परिपेक्ष्य में धर्म का वही अर्थ निकाला जाता है जो लिया गया है ...
फिर भी... चिन्तन जारी रहेगा 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2016 at 9:45pm

शुक्रिया आ समर कबीर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2016 at 9:45pm

शुक्रिया आ गिरिराज जी 

Comment by Samar kabeer on October 23, 2016 at 3:26pm
जनाब निलेश'नूर'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2016 at 2:30pm

आदरणीय नीलेश नूर जी, आपकी प्रतिष्ठा के सापेक्ष इस ग़ज़ल से मन चकित है. ग़ज़ल अच्छी है. हार्दिक बधाइयाँ. 

 

वैसे मैं धर्म के इतने संकुचित स्वरूप को कभी स्वीकार नहीं पाता. जिसे पंथ या सम्प्रदाय कहना था उसे हम कहने के बहाव में धर्म कहने लगते हैं. इधर बेचारे धर्म का गुणधर्म ही बदल जाता है.

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को यदि उद्धृत करूँ तो उनका कहना था,  कि ’धर्म एकवचन है.यह कभी बहुवचन हो ही नहीं सकता’.

यानी धर्म मान्यताओं नहीं, स्थापित मूल्यों और सनातन गुणों को संतुष्ट करता हुआ व्यवहृत होता है. पूजा-पाठ से पंथ, सम्प्रदाय और मान्यताएँ पोषित होती हैं, न कि धर्म. धर्म ’चोरी न करो’ सिखाता है. लेकिन चोर को पूजने की बात मान्यता कर सकती है. 

बाकी, आपकी ग़ज़ल है तो इसे अच्छा होना ही है. 

शुभेच्छाएँ 

अहँकार को कृपया अहंकार कर लें. 

और, मानव को हुआ सम्बोधन यदि भगवन को हो जाय तो उक्त शेर और बड़ा हो जायेगा, ऐसा मुझे प्रतीत होता है.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2016 at 2:10pm

आदरनीय नीलेश भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही आपने , केवल हिन्दी के शब्द होने से और भी अच्छा लगा । हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2016 at 8:12am

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
1 minute ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
6 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
10 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
26 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
31 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
33 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
35 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आदरणीय यही कि जिस मुक़द्दमे का इतना चर्चा था उसमें हारने वाले को सज़ा क्या हुई उसका भी चर्चा…"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। सुझावों के बाद यह और बेहतर हो गयी है। हार्दिक बधाई…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ठीक है पर कृपया मुक़द्दमे वाले शे'र का रब्त स्पष्ट करें?"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी  इस दाद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service