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जनाज़ा(लघुकथा)राहिला

"सर!ये भागवती हत्याकांड के कई पहलू सामने आ रहे है।"

"जैसे कि?"फिर कुछ सोचकर 

"ये वही सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी वाली घटना की बात कर रहे हो?जिसकी उसी के कार्यालय में गांव के किसी दबंग ने कुल्हाड़ी मारकर हत्या कर दी है।"

हाँ ,हाँ..!वही।दरअसल जितने मुंह उतनी बातें है सर! छोटा सा गांव है जहाँ मृतका पदस्थ थी।कुछ का कहना ये है, कि उच्च जाति का होने के कारण हत्यारे को  दलित महिला का अपनी बराबरी से बैठना नहीं सुहाता था ।"

"तो क्या वो भी कर्मचारी था? "

"जी,और मृतका के अधीनस्थ था ।वहीं दबी जुबान में ये सुनने में आ रहा है कि मामला अवैध सम्बन्ध  का है।और दोनों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था।"

"अच्छा और कोई बात इसके अलावा?"

"है सर !ये अवैध सम्बन्ध वाली बात उसकी सहकर्मी पूरी तरह से नकार रही हैं।उनका कहना है मामला शिक़वा शिकायत का है ।मृतका को ,हत्यारे द्वारा किसी घोटाले की भनक लग गयी थी ।जब से उसकी शिकायत उसने उच्चाधिकारी से की थी तब से हत्यारा खुन्नस खाये बैठा था।"

"हाँ तो अब तुम मुझसे ये  जानना चाहते हो खबर की मुख्य पंक्ति क्या हो?"अनुभवी  दिमाग ने  बात भाँपी।

"जी!"

"इतने तो तुम खुद भी समझदार हो की सनसनी किस खबर से फैलेगी।"

"लेकिन सर बाद में किसी और बात की पुष्टी हुयी तो?"

"तो बाद में  वो भी छाप देंगे छोटे से कालम में।अभी तो बड़े ,बड़े शब्दों में शाम के अखबार से सनसनी फैला दो।"बेहद सामान्य भाव से उन्होंने पेशा बदनाम किया।उसी दिन देर रात-

"चल उठ किसना!जो होना था हो गया ।सब जुड़ गए है ।आख़री बार चेहरा देख ले ।फिर जनाज़ा उठाते हैं।"

"चचा! अब कौन सा जनाज़ा उठना बाक़ी रह गया।मेरी सीधी -साधी भागो का जनाज़ा तो इन अख़बार वालों ने आज शाम को ही उठा दिया । वो दोनों हाथों से चेहरे को ढाँप , फबक,फबक के रो दिया।

अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by Parvez khan on October 24, 2016 at 7:22am
आदरणीय राहिला जी मैौलिक एवं समाचार पत्रो की हकीकत वयान करती रचना के बधाई
Comment by Rahila on October 23, 2016 at 3:18pm

आप सभी आदरणीय सुधिजनों का तहे दिल से शुक्रिया ।आप सब ने रचना को समय दिया ,सराहा और मेरा हौसला बढ़ाया।सादर नमन सभी को।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2016 at 9:15pm
जात-पांत के व घोटाले के मुद्दे पर उम्दा प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला जी। कुछ टंकण त्रुटियों के अलावा // उसी दिन देर रात // के प्रयोग से कालखंड प्रतीत होता है, गुरूजन के मार्गदर्शन से स्पष्ट हो सकेगा। सम्पादन कर बेहतरीन स्वरूप दिया जा सकता है। सादर
Comment by savitamishra on October 18, 2016 at 7:46pm

बढ़िया कथा

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 5:04pm
आदरणीया राहिला जी इस मार्मिक एवं खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Sushil Sarna on October 18, 2016 at 1:22pm

आदरणीया राहिला जी मार्मिक और भावपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by harikishan ojha on October 18, 2016 at 10:36am
बहुत सुन्दर आ. राहिल जी

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