For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22

जुगनुओं की बरात मुश्किल है।
साथ हो कायनात मुश्किल है।।

चांदनी गर बिखर नहीं जाती
इन निगाहों से मात मुश्किल है।।

यूँ हकीकत छुपी नहीं रहती।
आईने से निजात मुश्किल है।।

रात के बाद निकलता है दिन।
कैसे कह दूँ हयात मुश्किल है।।

दो जहां को सवाँर दूँ तब भी।
इस जहां की बिसात मुश्किल है।।

फासले दरमियाँ न आ पाते।
चुगलियों से निजात मुश्किल है।।


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1029

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 14, 2016 at 4:09pm

मेरे प्रयास को पसन्द करने  के लिए  हार्दिक धन्यवाद ,आदरणीय राजेश कुमारी जी।  रचना पर आपकी उपस्थिति के लिया आभार। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2016 at 9:22pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही अलका जी संशोधन के पश्चात् वो मिसरा भी निखर गया | आपको बहुत बहुत बधाई |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 7, 2016 at 7:27pm

"रचना को आपका स्नेह  मिला, बहुत ख़ुशी हुई " प्रोत्साहन के लिए  धन्यवाद आदरणीया कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 8:46pm

इस प्यारी सी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया अलका जी |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 4, 2016 at 10:12pm
आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। निस्संदेह ...ओबीओ में गुणीजनो द्वारा बहुत ही लाभप्रद जानकारी प्राप्त हो रही है। होसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका ।सादर
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 3, 2016 at 9:45pm
आदरणीय समर कबीर जी बहुत बहुत धन्यवाद।आपने समय दे कर बहुत ही अच्छे से detail में समझाया है बहुत शुक्रिया आपका। आपके मूल्यवान मश्वरे के लिए भी तहेदिल से शुक्रिया।
आपके सुझाव अनुसार संशोधन किया है ,बहुत धन्यवाद आपका ।सादर
Comment by Ravi Shukla on October 3, 2016 at 2:57pm

आदरणीया अलका जी बहुत बहुत बधाई इस गजल के लिये पहले मोबाईल पर एक टिप्‍पणी लिखी थी किन्‍तु हैंग होने से पोस्‍ट नहीं हो पाई अब देखा तो आदरणीय समर साहब की विस्‍तृत टिप्‍पणी भी आगई निश्चित ही आपको इससे लाभ हुआ होगा । गजल अच्‍छी हुई है जो कमी रह गई है उसे विद्वत जन बता ही चुके है । सादर 

Comment by Samar kabeer on October 2, 2016 at 10:58pm
आपकी ग़ज़ल की रदीफ़ "है" है,

"रात के बाद दिन निकलता है।
कैसे कह दूँ हयात मुश्किल है।।"

इस शैर के ऊला मिसरे का आख़री शब्द "है" है ,और ग़ज़ल की रदीफ़ भी "है" है,अब आपका ऊला मिसरा अगर इस तरह कर दें :-

"रात के बाद ही निकलता है दिन"

तो यह दोष निकल जायेगा।

अब आपको इस दोष के बारे में मिसाल देकर समझाता हूँ,मंच पर अभी जो तरही मुशायरा हुवा उसके तरही मिसरे पर मैंने जो गिरह लगाई थी उसे देखिये :-

"वो आये,हाल-ए-दिल पूछा, तसल्ली भी ज़रा देते
'जहाँ सब कुछ हुवा,इतनी इनायत और हो जाती'"

अब मैं ऊला मिसरे की तरतीब बदलता हूँ :-

"वो आये,हाल-ए-दिल पूछा, ज़रा देते तसल्ली भी
जहाँ सब कुछ हुवा,इतनी इनायत और हो जाती"

अब ऊला मिसरे का आख़री शब्द हुवा "भी" और रदीफ़ है "जाती" ,अब अगर कोई शख़्स मेरी ग़ज़ल न पढ़े और सिर्फ़ यह शैर पढ़े तो उसे लगेगा कि यह शैर नहीं मतला है क्यूँकि दोनों मिसरों के आख़री शब्द "ई" पर ख़त्म होते हैं ,यानी रदीफ़ के आख़री शब्द और ऊला मिसरे के आख़री शब्द में अगर समानता होगी तो यह तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष माना जायेगा ।
तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष दो तरह का होता है ,पहला "जुज़्वी" और दूसरा "कुल्ली",आपके शैर में जो दोष है वह "कुल्ली" है यानि ऊला मिसरे का आख़री शब्द भी "है" और रदीफ़ का आख़री शब्द भी "है" ,और मैंने जो मिसाल पेश की वो "जुज़्वी" है ।
उम्मीद है अब आप ने इस दोष के बारे में समझ लिया होगा ।
ओबीओ पर होने वाले आयोजनों में रचनाओं पर गुणीजनों की प्रतिक्रिया और उस पर होने वाली चर्चाओं को अगर आप ध्यान और दिलचस्पी से पढ़ेंगी तो आपको अलग अलग विधाओं के बारे में जो ज्ञान हासिल होगा वह आपके प्रयास में सहायक सिद्ध होगा, हर आयोजन में आख़िर में आने की बजाय आयोजन की शुरुआत से ही आपकी शिर्कत होना चाहिये,ये मेरा आपके लिये मश्विरा है ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 2, 2016 at 5:13pm
आभार ब्रजेश कुमार ब्रज जी।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 2, 2016 at 5:11pm
आभार आदरणीय शिज्जु शकूर जी ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service