For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी जिम्मेदारी तय करें ( आलेख - हिन्दी दिवस विशेष )

चौदह सितम्बर आते ही सरकारी संस्थानों , विद्यालयों आदि में हिन्दी भाषा की यूँ याद आने लगती है , जैसे सावन महीना लगते ही मायके वालों को बेटी को बुलाने की आती है । उसकी खातिरदारी में जैसे तरह तरह की योजनाएँ बनती हैं , ठीक वैसे ही हिन्दी भाषा पखवाड़े को लेकर शुरू हो जाती हैं । जैसे पंद्रह दिन बीते नहीं कि बेटी की विदा की चिंता सताने लगती है, वैसे ही पखवाड़ा निपटते ही हिन्दी भाषा को एक कोने में पटक वही पुराना ढर्रा चलने लगता है ।
 
चौदह सितम्बर हिन्दी दिवस , दिवसों की श्रृंखला में एक ओर दिवस , यानि दिखावा , शोर-शराबा , भाषाई प्रेम का छद्म आयोजन कर ताँता प्रकार के खिलवाड़ ।शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नित-नवीन परिवर्तनों का बहाना लेकर न सिर्फ अंग्रेजी भाषा को प्रश्रय दिया वरन उसकी खूब आवभगत भी की ।परिणाम स्वरूप अंग्रेजी भाषा अतिथि भाषा न रहकर मेज़बान भाषा हिन्दी के समकक्ष या यूँ कहें उससे भी एक कदम आगे आ बैठी है ।जिस तरह अतिथि आगमन होने पर घर के सदस्य का अनादर नहीं किया जाता , वैसे ही अंग्रेजी भी एक अतिथि भाषा है । उसके लिए हम अपनी भाषा का अपमान या उपेक्षा क्यों करें ?

आज हमने अंग्रेजी भाषा को ज्ञान का , सम्मान का , पद का , जीविका का साधन बना लिया है ।अंग्रेजी भाषा का ज्ञान एकमात्र ध्येय बन गया है ।जीवन मूल्य व संस्कृति जो मातृभाषा के ज्ञान के बगैर अधूरे हैं, से हमने जैसे नाता ही तोड़ लिया है ।अपनी ही जड़ों से दूर होकर , नींव को खोखला कर राष्ट्रीयता से दूर हो रहे हैं ।अपनी ही भाषा के प्रति समर्पण भाव और त्याग को भूल कर अविश्वास का वातावरण निर्मित कर रहे हैं ।भाषा सिर्फ एक भाषा नहीं देशकाल की संस्कृति , संस्कार , आधार , जीवन जीने की पद्धति , जीवन मूल्य होती है । इसके बिना कोई भी देश सर्वांगीण विकास नहीं कर सकता ।

विडम्बना है कि आज अंग्रेजी भाषा एवं ज्ञान एक दुसरे के पूरक बन गए हैं ।जबकि अंग्रेजी भी अन्य भाषाओं की तरह सिर्फ एक भाषा है ।ज्ञान से उसका कोई लेना देना नहीं । पृथ्वी अंग्रेजी में गोल है तो हिन्दी में भी गोल ही है ।फिर भी अंग्रेजी को ज्ञान और आत्मविश्वास का पैमाना मान लिया गया है ।

जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है या सतही है , उनमें अंग्रेजी न बोल पाने की कसक गाहे-बगाहे सिर उठाती रहती है ।भाषा कोई भी हो , उस पर एक जीवन में पूर्ण अधिकार कर पाना असंभव सा है ।बिना पूर्णता के हम कैसे ज्ञाता ? अपने अपमान , उपेक्षा , दुर्दशा और तिरस्कार की पीड़ा को हिन्दी भाषा ही समझ सकती है ।अपने लुप्त होते अस्तित्व को लेकर वह एक कोने में सुबकने को मज़बूर है ।जब मातृभाषा की यह दुर्दशा है तो क्षेत्रीय भाषाओँ की स्थिति का सहज़ ही अनुमान लगाया जा सकता है ।हमने पश्चिमी संस्कृति अपनाई , परिधान अपनाये, भाषा अपनाई और अब लिपि भी रोमन में लिखने लगे हैं।बहुत शोचनीय प्रश्न है कि जब हम सोचते हिन्दी में हैं , महसूसते हिन्दी में है , तो लिखते हिन्दी ( देवनागरी ) में क्यों नहीं ? हिन्दी साहित्य पढ़ते हुए अनुभूति की जो तीव्रता महसूस होती है , होठों पर हँसी और आँखों में नमी होती है वह भला किसी और भाषा के साहित्य को पढ़कर कैसे हो सकती है । वह तो एक वाचन मात्र होती है ।उससे कोई जुड़ाव पैदा नहीं हो पाता ।रोमन लिपि लिखने और पढ़ने की प्रवृत्ति न सिर्फ हिन्दी भाषा के लिए घातक है बल्कि इसके प्रचार-प्रसार और विकास में भी बाधक है ।

बावज़ूद इसके सोशल मिडिया पर सक्रिय हो मैंने हिन्दी भाषा की सुखद बयार बहते हुए देखी है ।वह है हिन्दी लेखन के क्षेत्र में सबसे अहम् विशाल परिवर्तन महिला लेखिकाओं की तीव्रता से बढ़ोतरी ।जो महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर नहीं निकल पाती थीं , वे सोशल साइट्स से जुड़कर पाककला से लेकर अंतरिक्ष तक हर विषय पर लिख रही हैं , ब्लॉग्स बना रही हैं ।इससे न सिर्फ उनके भीतर छिपी प्रतिभा बाहर निकलकर आई है बल्कि हिन्दी साहित्य भी समृद्ध हुआ है ।पुरुष वर्ग भी इस माध्यम का खुलकर प्रयोग कर रहा है ।सार्वजानिक मंच होने से युवा पीढ़ी भी इनके संरक्षण और सान्निध्य में संस्कारित हो रही हैं । यहाँ ये बात गौर करने लायक है कि ये सन्दर्भ सिर्फ साहित्यिक लोगों का ही दिया गया है ।

अंत में सिर्फ यही कहूँगी कि हिन्दी भाषा की चिंता करने की बजाय हम उसके विकास और प्रसार पर चिंतन करें ।सरकारी तंत्र को जनांदोलन कर इसके दूरगामी परिणामों को लेकर सचेत करें ।घड़ियाली आँसु न बहाएँ ।उसे दिवसों के कैद से मुक्त कर खुले आकाश में विचरण करने दें ।बहुत हुआ दिवसों का मानना - मनाना ।इसे वर्ष में एक बार निभाई जाने वाली परम्परा को तोड़कर सच्चे मन से पुनर्विचार करें हिन्दी भाषा के पुनरुत्थान के लिए । क्योंकि भाषा की जीवन तभी लंबा होता है जब उसका बहुतायत प्रयोग किया जाये ।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि न प्रयोग या कम प्रयोग होने वाली भाषाओँ को मरते देर नहीं लगती है ।अगर हम अंग्रेजी हुकूमत को भगा सकते हैं तो अंग्रेजी भाषा को क्यों नहीं ।आखिर कब तक अपनी अकर्मण्यता का दोष अंग्रेजों के सिर मढ़ते रहेंगे ।कुछ जिम्मेदारी तो हमे अपने लिए भी तय करनी होगी न ।

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

शशि बंसल
भोपाल ।

Views: 594

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2016 at 12:02pm

हिन्दी भाषा की चिंता करने की बजाय हम उसके विकास और प्रसार पर चिंतन करें | जीने फ़िल्मी गीत  हिंदी छन्दों के अधर पर लिखे और गाये जा रहे है और जितना रस अनुभव करते है वह हिंदी के सम्रद्ध भाषा की पहचान है | हमें हीन भावना से उभरना होगा \ आज हिंदी के शब्दों का अंग्रेजी में उपयोग हो रहा है \ योगा, लूट, गुरु जैसे हिंदी के शब्द अंग्रेजी ने अपना लिए है | अब लेखकों को शुद्ध वर्तनी पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हमारी हिंदी बिगड़े नहीं | सुंदर आलेख के लिए बधाई 

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:17pm
मोहतरमा शशि बंसल साहिबा आदाब,आपका सही परिचय आज हुआ है मुझ से,आपका आलेख सुनकर मुग्ध हो गया,तहरीर की रवानी देखते ही बनती है,कमाल का लेखन है आपका,सलाम करता हूँ आपके उस जज़्बे को जो मातृ भाषा के प्रति आपके क़लम में है, में आपके एक एक शब्द से सहमत हूँ,बल्कि मुझे तो ये लग रहा है जैसे ये मेरी ही आवाज़ है, अंग्रेजी भाषा का हम पर इतना दबाव है कि जाहिल इंसान भी अपनी बात चीत में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने की कोशिश करता है, लेकिन इसके बर अक्स विद्वानों में भी ये बीमारी पाई जाती है कि बोलते या लिखते समय अपनी बात में ज़ोर पैदा करने के लिये अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं,जैसे हिंदी में इस बात के लिये माक़ूल शब्द ही नहीं है,ये उस ग़ुलामी के असरात हैं जिससे हमने मुक्ति तो पाली लेकिन जिस्मानी तौर पर ज़हनी तौर पर तो हम आज भी ग़ुलाम ही हैं ।
कुछ दिन पहले एक शीर्षक पर मुझे मज़मून लिखना था,शीर्षक था "तकनीकी शिक्षा और हिंदी भाषा",ये लेख मेरा हिंदी दिवस पर निकलने वाले एक रिसाले में प्रकाशित हुआ है,जिसका विमोचन 14 सितम्बर को रतलाम में होगा,इस आलेख के पहले मेने जिन लोगों से भी प्रश्न किया उनमें से एक ने भी ये नहीं कहा कि ये सम्भव है, सब ने अंग्रेज़ी के पक्ष में ही वोट ।
आपके आलेख ने दिल के तारों को झन झना दिया ।
मेरे पास शब्द नहीं हैं इस आलेख की तारीफ़ के लिये, दिल की गहराइयों से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by kanta roy on September 13, 2016 at 8:50pm
वाह! बहुत ही गम्भीर चिंतन को मजबूती से पेश किया है आपने आदरणीया शशि बंसल जी। पढ़कर अच्छा लगा। इस सार्थक आलेख के लिये बधाई आपको।
Comment by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 8:11pm

''आखिर कब तक अपनी अकर्मण्यता का दोष अंग्रेजों के सिर मढ़ते रहेंगे ।कुछ जिम्मेदारी तो हमे अपने लिए भी तय करनी होगी न ।'' बिलकुल सही कहा आदरणीया शशि जी आपने। आपका ये आलेख वर्तमान व्यवस्था , उसका दिखावटीपन , पर करारा प्रहार है। अपने ही देश में अपनी ही भाषा के लिए इतनी औपचारिकता क्यों ? किसी भी भाषा को सीखना विद्वता का परिचायक है किन्तु अपनी भाषा की अनदेखी करना कहाँ का न्याय है। पैदा होते ही हम जो पहला शब्द 'माँ ' बोलते हैं वो हिंदी में होता है तो फिर कैसे किसी और भाषा को हम माँ से बड़ा कर सकते हैं। हमारी भाषा प्रचार की मोहताज़ नहीं बस एक कदम अपने अंदर झाँकने का है। अंग्रेज़ी भाषा सीखनी पड़ती है मगर हिंदी तो हमारे खून में दौड़ती है। पुरस्कारों को जीतने के लिए हिंदी से प्रेम शायद उसके प्रति हमारा दिखावटीपन होगा। हम सोचें ,हम बोलें हम दूसरों को प्रेरित करें यही हमारा हिंदी के प्रति सच्चा सम्मान होगा। बहरहाल इस प्रेरक आलेख के लिए हार्दिक बधाई। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service