For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब (इस्लाही गजल )

2212 2212 2212 22

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |

मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |

मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 

बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |

ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |


हर्ष महाजन  

"मौलिक व् अप्रकाशित"


नवाज = ईश्वर/भगवान् 
मंदिर = इंसानी देह  

Views: 1569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 19, 2015 at 8:15pm
आ0 annapurna bajpai जी उत्साहवर्धक शब्दों के लिए शुक्रिया ।
Comment by annapurna bajpai on August 19, 2015 at 6:50pm

सुंदर भाव युक्त गजल , बधाई आपको 

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 11:00am

आ० Saurabh Pandey जी सच ही कहा आपने ...यह मंच ही गुरु है जो चीज़ चाहो यहाँ हम सीख सकते हैं यहाँ आकर धन्य हुए हैं सर | आभार !!

Comment by Harash Mahajan on August 4, 2015 at 10:57am

आदर्नीय  समर जी शुक्रिया आपकी बताई हुई इस कृति में  त्रुटी दुरुस्त कर ग़ज़ल में  रख ली है ...शुक्रिया एक बार फिर |
आज बहुत दिनों बाद इस पुरानी कृति पर आया हूँ...गुनीजनों की व्यस्तता के चलते   इस पर काम कुछ चर्चा इस पर अधूरी रह गयी |

मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी मगर
क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |

हर एक दिल प हो गई क़ाबिज़ ये दुश्मनी,
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2015 at 2:12pm

यह मंच ही गुरु हैं और हमआप शिष्य हैं. बाकी सारा कुछ सम्बोधन के क्रम में अपनाये गये शब्द हैं, आदरणीय हरष भाई.

शुभेच्छाएँ. 

Comment by Harash Mahajan on August 2, 2015 at 10:11am

आदरणीय Jatinder Aulakh जी इस बे-पनाह प्यार के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया !!
साभार !!

Comment by Harash Mahajan on August 2, 2015 at 10:09am

आदरणीय Saurabh Pandey जी आदाब ! सर नि:शब्द  हूँ ! सर आप सब गुनीजनों के हजूर में अपनी अदना सी कोशिश कर रहा हूँ और आज आप को मेरी इस मुक्तसर सी रचना पर आप आये दिल बाग़ -बाग़ हो गया | आप सब का सानिध्य पा कर सहज होने की कोशिश भर है | सर यहाँ हर शख्स पूरी तरह तराशा हुआ नज़र आता है | आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी और आदरणीय Samar kabeer जी हर इशारे को समझने की कोशिश कर रहा हूँ | आपसे दिली अनुरोध  सर पर अपना साया बनाए रखियेगा सर | इस मंच पर आकर सर..खत्म हो रही "गुरु-शिष्य" परम्परा को फिर से अस्तित्व में आते देखा है | शायरी और ग़ज़ल की रवानगी में नया जोश भरना इस छोटे से कार्यकाल में मिथिलेश वामनकर जी और Samar kabeer जी को देखा है | सर 0b0 को और यहाँ पर सभी को मेरा तह-ए-दिल से सलाम | शुक्रिया सर !!

साभार

हर्ष महाजन

Comment by Jatinder Aulakh on August 2, 2015 at 7:29am
Bahut khoobsurat

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2015 at 3:27am

हर्ष भाई आपकी पहली रचना पढ़ रहा हूँ. आप जैसे नये सदस्य इस मंच पर आते ही कितनी सहजता से वातावरण में रच-बस गये हैं ! देख कर मन प्रसन्न होता है. आपको मिले सुझावों से आपकी कोशिशें और क़ामयाब होंगीं. 

शुभेच्छाएँ. 

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:27pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी वक़्त मिले नज़र इधर भी दीजियेगा सर !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service