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122 122 122 122

ये अकुलाहटें मेरे मन की कहूँ क्या
तड़प बेकरारी नयन की कहूँ क्या

उठे है धुआँ सा दिलो जाँ से मेरे
जली है ज़मीं भी चमन की कहूँ क्या

चला जा रहा हूँ सफ़र में मैं पैहम
नहीं इंतिहा है थकन की कहूँ क्या

तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या

मुझे लूटकर घर तलक छोडा़ उसने
वफ़ा देखिये राहजन की कहूँ क्या

निशां बह गया वक्त की मौज के साथ
अदा रह गई बांकपन की कहूँ क्या

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 5:26pm

आदरणीया महिमा जी, आदरणीय जवाहर लालजी, आदरणीया राजेश दीदी आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया जो आपने मेरी इस रचना को सराहा


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Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 7:11pm

चला जा रहा हूँ सफ़र में मैं पैहम
नहीं इंतिहा है थकन की कहूँ क्या-----लाजबाब 

तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या---मार्मिक उम्दा 

मुझे लूटकर घर तलक छोडा़ उसने
वफ़ा देखिये राहजन की कहूँ क्या-----क्या बात 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल शिज्जू भैय्या हार्दिक बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:09pm

गजब शब्द संयोजन और भाव भी प्रशंसनीय!

Comment by MAHIMA SHREE on February 26, 2015 at 9:57am

तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या

मुझे लूटकर घर तलक छोडा़ उसने
वफ़ा देखिये राहजन की कहूँ क्या......लाजबाव .. हर शेर एक से बढ़कर एक है..आपको हार्दिक बधाइयाँ


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Comment by शिज्जु "शकूर" on February 25, 2015 at 6:02pm
रचना की सराहना के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2015 at 5:17pm

आदरणीय शिज्जु भाई , बेमिसाल ग़ज़ल कही है , हर शे र के लिये आपकोअ हार्दिक बधाइयाँ ॥

तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या  -- एक दुखद सच्चाई !! क्या बात है । हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 4:57pm

आ० शिज्जू जी

आपकी गजल हो और दिल वाह वाह न करे यह कैसे हो सकता है i आपको एक और अच्छी  गजल पर होली की बधाई  i  सादर i

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:46pm
चला जा रहा हूँ सफ़र में मैं पैहम
नहीं इंतिहा है थकन की कहूँ क्या
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आपको बधाई
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 1:37pm

सुन्दर गज़ल!

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 9:46am

आदरणीय शिज्जू सर सुन्दर प्रस्तुति हैं....

तरसता रहा उम्र भर फूल को वो
ये आराइशें इस कफ़न की कहूँ क्या ...........वाह ...हार्दिक बधाई !

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