For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मस्त वर्षा ऋतु निराली !

मस्त वर्षा ऋतु निराली !

 

मस्त वर्षा ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा ।

भीगती है सृष्टि सारी, देख मन हो बाँवरा ।।

झूमता सावन लुभाता, शोर करती है हवा ।

मग्न होकर मोर नाचें, गीत गाते हैं लवा ।१।

 

आगमन वर्षा सुखद जग, तृप्त करती है धरा ।

मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा ।।

गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।

वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२।

 

झूमते हैं आज द्रुमदल, गाँव में उत्सव मना ।

पुष्प सुन्दर नाचते हैं, हर नगर छाता तना ।।

देख आँखें सेंकते सब, दूरदर्शन मालिका ।

मार्ग हैं जलमग्न सारे, सुस्त लगती पालिका ।३।

-सत्यनारायण सिंह 

मौलिक व अप्रकाशित 

 

   

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyanarayan Singh on August 3, 2014 at 11:34am

परम आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम 

   

      आदरणीय  प्रोत्साहनात्मक काव्य प्रतिक्रया हेतु आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर धन्यवाद .,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2014 at 1:51am

है सरस, संतोषकारी छन्द रचना आपकी
अतिसहज पर भाव भारी छन्द रचना आपकी
सत्यनारायण बधाई आपको मेरी मिले
कामना है, पद्य-सर में शुभ्र-शतदल ही खिले 

Comment by Satyanarayan Singh on August 2, 2014 at 11:24pm

परम आदरणीय सौरभ जी सादर 

पा बधाई आपकी फिर, आज मन हर्षित हुआ ।

लाभदायक मार्गदर्शन, ज्ञान भी वर्धित हुआ ।।

मार्गदर्शन संग यूँ ही, स्नेह भी मिलता रहे ।

ओ बि ओ की वाटिका में, मन सदा रमता रहे ।।

 

छंद भाया गीतिका यह, कर रहा मन साधना ।

दीजिये आशीष मुझको, पूर्ण हो मन कामना ।।

शब्द देसज और संस्कृत, मेल मन भाता नहीं ।

आपकी इस टिप्पणी ने, बात यह हमसे कही ।।

 

मस्त का पर्याय हमको, मुग्धकारी मिल गया ।

मुग्धकारी शब्द पाकर, अर्ध पद वह खिल गया ।।

स्पष्ट हो अब अर्थ शायद, भाव मैंने यूँ भरा ।

अनुगमन कर शीत ने फिर, ताप जगती का हरा ।। 

     सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 1, 2014 at 5:29pm

गीतिका छन्द पर इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय सत्यनारायणजी..

वैसे, शाब्दिक रूप से देसज और संस्कृत शब्दों का मेल कई बार अटपटा सा लगने लगता है.

दूसरे, मस्त वर्षा ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा  .. में मस्त का प्रयोग खटकता है. ’मस्त’ एक चलताऊ सा शब्द है, आदरणीय.  अलबत्ता, मुम्बई क्षेत्र यह शब्द बहुत प्रचलित है. 

मस्त वर्षा  के स्थान पर मुग्धकारी किया जा सकता है. यानि, मुग्धकारी ऋतु निराली, मेघ बरसे साँवरा

मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा .. इस पद का अर्थ बहुत स्पष्ट नहीं हुआ.

सादर

Comment by Satyanarayan Singh on July 29, 2014 at 11:30am

आदरणीय लडिवाला जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ

Comment by Satyanarayan Singh on July 29, 2014 at 11:29am

आदरणीय डॉ. आशुतोष जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ

Comment by Satyanarayan Singh on July 29, 2014 at 11:29am

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 10:33am

गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।

वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२ - वाह ! बहुत सुन्दर भाव रचित सुंदर रचा के लिए हार्दिक बधाई श्री सत्य नारायण सिंह जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 4:41pm

आदरणीय ..वाकई इस रचना को पढ़कर तो आनंद आ गया ..सावन में आपने तो सभी को बारिश में भिगो दिया ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 28, 2014 at 11:17am

सत्य जी

सुन्दर रचना  i

आगमन वर्षा सुखद जग, तृप्त करती है धरा ।

मोदकारी शीत गुण से, ताप जगती का हरा ।।

गुदगुदाये देख यौवन, खिलखिलाये बचपना ।

वृद्ध रोपें बीज अनुभव, अंकुरित हो कल्पना ।२।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service