For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (६) : ज़िंदगी बेचैन करती है !

करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है 
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१ 
.
समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा 
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२ 
.
के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है 
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३ 
.
मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन 
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती है//४ 
.
नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ रहता है 
मगर फिर भी मुझे क्यूँ, मयकशी बेचैन करती है//५ 
.
ख़ुदा क्या है? कहाँ खोजूं जो है मतलब तलाशो तुम 
मुझे तो बस, ग़ज़ल की बंदगी बेचैन करती है//६ 
.
ग़रीबी देखकर, तुम तो, फ़कत हैरान होते हो 
ग़रीबों की मुझे बेचारगी बेचैन करती है//७ 
.
करो कुछ भी, जो जी चाहे, इसे बस मशवरा समझो
गलत कुछ हो तो 'माँ' की नाख़ुशी बेचैन करती है//८ 
.
सुनो ऐ ‘नाथ’ घर की खिड़कियाँ दर बंद कर सोना 
मिले ठंडी हवा तो, आशिक़ी बेचैन करती है//९ 
.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : करूं-12/मै-2/क्या-2/मेरी-12/आवारगी-2212/बेचैन-221/करती-22/है-2 [1222-1222-1222-1222]

Views: 861

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 4:50am

सुनो ऐ ‘नाथ’ घर की खिड़कियाँ दर बंद कर सोना 
मिले ठंडी हवा तो, आशिक़ी बेचैन करती है//...  बहुत खूब आ0 रामनाथ भाई....

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 21, 2013 at 4:17pm

Hardik Aabhar Kesari Sahab...Shakil Sahab...Naman...!!!

Ji...Aapne Bilkul Durust Farmaaya Hai..Koshish Karunga..Use Door Karne Ki......Punasch: Aabhar...//

Comment by शकील समर on October 21, 2013 at 9:09am

.शे'र ५ को....इस तरह अगर लिखूं...तो कैसा रहेगा.....//.......

नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ है दिलबर 

शेअर को ऐसा कर देने पर तकाबुले रदीफ का दोष खत्म हो जाएगा।

शे'र संख्या ३ को .........के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है

ऐसा करने पर तकाबुले रदीफ बरकरार रहेगा। क्योंकि इस बदलाव से शेअर ऐसा होगा:

के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है

अब अगर इस शेअर को स्वतंत्र रूप से पढ़ा जाए तो ये भ्रम पैदा होता है कि इस शेअर में है रदीफ है और शायर से काफियाबंदी में गलती हो गई है। यानी शेअर दोषयुक्त है।

Comment by वीनस केसरी on October 21, 2013 at 1:14am

एक बार फिर से आपकी ग़ज़ल के कई अशआर मुत्तासिर कर गए कुछ ने देर तक अपने पास रोके रखा ...
कुछ ने अपने अर्थ में उलझा लिया

निगाहे-हुस्न -- इस इजाफत से क्या अर्थ निकला जाए ?
"हुस्न की निगाह" इसका क्या अर्थ है

ग़ज़ल की बंदगी बेचैन करती है.... ग़ज़ल की बंदगी सुकून देती है या बेचैन करती है ... शब्द संयोजन बदलिए

करो कुछ भी, जो जी चाहे, इसे बस मशवरा समझो
गलत कुछ हो तो 'माँ' की नाख़ुशी बेचैन करती है ............ ये तो आपने सूचना दे दी ... मशविरा कहाँ है ? शब्द संयोजन बदलिए !!!


Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 21, 2013 at 1:09am

आदरणीय शकील साहब...शे'र ५ को....इस तरह अगर लिखूं...तो कैसा रहेगा.....//.......

नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ है दिलबर 

शे'र संख्या ३ को .........के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है ......आपका आभारी....

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 20, 2013 at 1:37pm

हार्दिक नमन आदरणीय संदीप पटेल साहब.........जी आपके कथन पर अमल करूँगा.....//....बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल को सराहने हेतु.........//

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 2:00pm

वाह वाह आदरणीय बहुत खूब अभी आपकी एक ग़ज़ल पढ़ के आया हूँ

और यह ग़ज़ल भी शानदार हुई है बधाई हो

अग्रजों के कहे पर अवश्य काम कीजिये

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:27pm

जी...तकाबुले रदीफ़ का चक्कर दुबारा आ गया..हालाँकि मैं संयत था..लेकिन शुक्रिया..शकील साहब..का...पुनश्च: आभार !!!!!..नमन 

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 12:26pm

 नमन आ. सौरभ पाण्डेय साहब...चरण वंदन..!! आप मेरे अभिभावक हैं..मुझे सब स्वीकार है...जितना-डांटना हो..फटकारना हो..बोल दीजिये..शायद इसी स्नेह की बदौलत सीख रहा हूँ...स्नेह बनाये रखें....पुनश्च: नमन !!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 12:19pm

शकील साहब .. आप द्वारा सुझाया गया दोष तकाबुले रदीफ़ का दोष कहलाता है.

इसे साझा कर आपने जागरुक विद्यार्थी होनी का संयत उदाहरण दिया है.

शुभेच्छाएँ.. हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service