For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दिल को न चैन आयेगा

मेरे दिल को न चैन आयेगा,
उम्र सारी मलाल आयेगा।

नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीब आयेगा।

आसमाँ पर है सूरज अगर,
चाँद कैसे भला आयेगा।

बददुआयें वो देने लगे,
अब मुकद्दर क़हर ढायेगा।

हमनशीं बन गया एक फिर,
देखें कब तक निभा पायेगा।

मुझसे लेता रहा उल्फतें,
तोहमतें वो जो दे जायेगा।

अलविदा ज़िन्दगी को कहें,
जाके तब कुछ क़रार आयेगा।

वो जो सीने से लगते थे अब,
पीठ पर उनका वार आयेगा।

गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on March 19, 2014 at 12:29am

आपकी दाद का बेहद शुक्रिया गुमनाम साहब.

एकदम सही पकड़ा अपने, बहुत खूब कहा...

मैं खुद भी नौसिखिया हूँ, यहाँ सब इसी तरह से सीखते और सिखाते हैं, बेस्ट ऑफ़ लक.

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 18, 2014 at 5:58pm

वाह सर जी इस तरह तो मैंने सोचा ही नही खूब बहुत खूब सर फिर से दाद कबूलें रही बात कमेंट की गोली मारो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मेरे दिल को तो  चैन  आ गया
इक नया पाठ सिखला गया

क्या मैं सही कह पाया

Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 12:34pm

माफ़ कीजियेगा गुमनाम साहब गलती से आपका कमेंट डिलीट हो गया मुझसे .

Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 12:30pm

गुमनाम जी आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...

ये शेर देखिये....

मेरे दिल को न चैनायेगा,
उम्र सारी मलालायेगा।

नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीबायेगा।

अब ग़ज़ल पर नज़रे सानी करें शायद अब काफिया और रदीफ़ सही समझ में आये....

Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 1:00am

जी सौरभ भय्या सही कहा अपने, ग़ज़ल के मिसरों का वज्न २१ २२१२ २१२ ही है. आगे से परिपाटी के पालन की पूरी कोशश करूंगा. ग़ज़ल की सराहना के लिए मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आपका.

Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 12:57am

बहुत शुक्रिया रविकर साहब और जीतेन्द्र गीत साहब हौसला अफजाई के लिए आपका भी शुक्रगुज़ार हूँ मैं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 12:13am

गुल है 'इमरान' बिखरा भी तो,
ज़र्रे ज़र्रे को महकायेगा।

एक अरसे के बाद इ मंच पर आपकी उपस्थिति प्रसन्न कर गयी. अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत् दाद कुबूल कीजिये.

मिसरे का वज़्न दे देते तो एक परिपाटी का पालन हो जाता है.

मेरे हिसाब से वज़्न यों होगा - २१ २२१२ २१२

बताइयेगा..

शुभेच्छाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 7:05pm

नूर मुझसे ख़फ़ा है तो फिर,
बस अँधेरा करीब आयेगा।...........वाह! खुबसूरत शेर

दाद कुबूल कीजिये इमरान साहब

Comment by रविकर on August 17, 2013 at 5:29pm

बढ़िया है आदरणीय-
बधाई-

Comment by इमरान खान on August 17, 2013 at 9:38am
अन्नपूर्णा जी शुक्रगुजार हूँ मैं आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service