For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नव निशा की बेला लेकर,

साँझ सलोनी जब घर आयी।

पूछा मैंने उससे क्यों तू ,

यह अँधियारा संग है लायी॥

सुंदर प्रकाश था धरा पर,

आलोकित थे सब दिग-दिगंत।

है प्रकाश विकास का वाहक,

क्यों करती तू इसका अंत॥

जीवन का नियम यही है,

उसने हँसकर मुझे बताया।

यदि प्रकाश के बाद न आए,

गहन तम की काली छाया॥

तो तुम कैसे जान सकोगे,

क्या महत्व होता प्रकाश का।

यदि विनाश न हो भू पर,

तो कैसे हो परिचय विकास का॥

दुख के भय से सुख की पूजा,

नफरत से अस्तित्व प्यार का।

इसीलिए तो हे प्रिय ‘दर्पण’,

परिवर्तन नियम संसार का॥

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित-प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’)

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 4:50pm

बहुत सही.

प्रयासरत रहें .. रचनाएँ पढ़ें और उन्हें समझने की कोशिश करें 

वैसे

नव निशा की बेला लेकर,

साँझ सलोनी जब घर आयी... इन पंक्तियों के माने क्या हुए ?

शुभेच्छाएँ

Comment by बृजेश नीरज on July 31, 2013 at 10:34pm

बढ़िया है। इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 31, 2013 at 4:44pm

दुख के भय से सुख की पूजा,

नफरत से अस्तित्व प्यार का।

इसीलिए तो हे प्रिय ‘दर्पण’,

परिवर्तन नियम संसार का...........andhkaar n hota to sachumuch prakash kee keemat pata nahee chaltee ...behtaree saadar badhayee 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 3:38pm

प्रदीप भाई जी प्रयास बहुत सुन्दर है बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2013 at 12:08pm

बहुत सुन्दर भाव लिए अच्छी रचना हुई है भाई श्री रवि प्रकाश जी | सुख की अनुभूति उसे नहीं हो सकती जिसने  पहले 

कष्ट नहीं उठाये हो | इसी प्रकार अँधेरे से उजाले में आने पर ही उजाले का अहसास होता है | हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2013 at 12:11am

आदरणीय प्रदीप जी, सुंदर सरल रचना प्रस्तुति पर, हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service