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तुमने अत्याचार का कैसे समर्थन कर दिया
मौन रह कर दुष्ट का उत्साहवर्धन कर दिया

धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया

जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया

चेतना की बिजलियों ने रोशनी तो दी मगर
एक मरुस्थल की तरह से मन को निर्जन कर दिया

मन तथा मस्तिष्क के इस द्वंद मे व्यवहार ने
कर दिया इसका कभी उसका समर्थन कर दिया.

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Comment by fauzan on May 20, 2010 at 11:28pm
Sabhi doston ko bahut bahut dhanyawad
Comment by aleem azmi on May 20, 2010 at 9:56pm
जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया
bahut khoob behatareen rachna aapkiiiiiiiiii
Comment by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 1:54pm
धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया,
sir ji bahut achchha hain
Comment by satish mapatpuri on May 20, 2010 at 1:09pm
जिस विजय के वास्ते सब कुछ किया तुमने मगर
उस विजय ने ही तुम्हारा मान मर्दन कर दिया
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है फौजान साहेब. जिसको हासिल करने लिए आदमी सब कुछ कर गुजरता है,दरअसल वही उसे बदनाम बना देती है .

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 20, 2010 at 8:16am
Bahut aala Ghazal hai Fauzan Bhai. Jis saadgi se baat kahi hai - Lajwaab hai.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 19, 2010 at 8:15pm
धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया,
यथार्थ, बिल्कुल यथार्थ कहा है आपने फ़ौज़ान भाई, जिसने भी दुख के सीमा को पार किया होगा वो आसुओ के वेदना को बहुत ही नज़दीक से महसूस किया होगा, एक शानदार ग़ज़ल कहा है आपने, बहुत अच्छा, सीधे तीर की तरह दिल तक उतर रही है यह रचना ,बहुत बहुत धन्यवाद है आपको,
Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:09pm
चेतना की बिजलियों ने रोशनी तो दी मगर
एक मरुस्थल की तरह से मन को निर्जन कर दिया
Bahut hi behtarin ghazal hai yey, sarey shair achey hai, saral bhasha ney shayer ney bahut hi unchi batey kahi hai, thanks,
Comment by Admin on May 19, 2010 at 12:03pm
तुमने अत्याचार का कैसे समर्थन कर दिया
मौन रह कर दुष्ट का उत्साहवर्धन कर दिया,

वाह फौज़ान साहब वाह , बहुत खूब कहा है आपने , बिलकुल सही है, गलत बातो का विरोध न करना और चुप चाप सहन कर लेना भी अत्याचार का समर्थन और अत्याचार करने वाले का उत्साहवर्धन है,बहुत ही सही कहा है, काफ़ी ससक्त अभिव्यक्ति है आपकी, बहुत बहुत धन्यवाद,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 19, 2010 at 8:33am
धैर्य की सीमा का जब दुख ने उल्लंघन कर दिया
आँसुओं ने वेदना का खुल के वर्णन कर दिया
bahut hi badhiya gazal hai fauzan jee.......man khush ho gaya subah subah ye gazal padh kar....

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