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की बोर्ड से चिपका
स्क्रीन की सुंदरता से मुग्ध
हर सवाल का जबाब
चेट्टिंग से चेट्टिंग तक
मोबाइल से चीटिंग करते
झूठ से भरमाते
फिर भी मुस्कुराते
आँखें कान नाक
सब अंधे
जिनसे हमेशा
रिसता है
ज़हरीला  
फरेब
ऐसे रिश्ते

प्रेम की पराकाष्ठा है  
आज का प्रेम


संदीप पटेल "दीप"

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 530

Comment

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Comment by विजय मिश्र on July 20, 2013 at 10:29am
यह आधुनिक रासलीला है जिसका पुर्नविन्यास और कभी-कभी तो पूर्णाहुति भी डिस्को क्लब या ऐसे किसी सार्वजनिक स्थल पर हो जाता है . घृणित है आज का दौर जीवन संदर्भ चाहे कोई भी हो . सब तार-तार है , नीरस और बेकार है .सामयिक विषय और आज की फोक्ली युवा पीढ़ी पर सही आकलन . साधुवाद संदीपजी .
Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:21pm

हाई टेक प्यार को परिभाषित किया आपने,,

सटीक परिभाषा !!

बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप भैया !! 

Comment by राज़ नवादवी on July 19, 2013 at 9:53am

मेरी राय में 'ऐसे रिश्ते  प्रेम की पराकाष्ठा है  आज का प्रेम' की जगह  'ऐसे रिसते  प्रेम की पराकाष्ठा है  आज का प्रेम' ज़्यादा संगत होता!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 7:41pm

प्रेम की पराकाष्ठा है  
आज का प्रेम /फरेब - सही चिंतन आज के प्रेम प्यार पर, बधाई श्री संदीप भाई  -

फिर भी तो युवा है

प्रेम में लवरेज | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 7:06pm

" सच कहा आपने ,आदरणीय..संदीप भाई जी,..आज के प्रेम की ऐसी ही कुछ परिभाषाएं हैं ! रचना प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई

Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 1:47pm

आदरणीय दीप जी बहुत सही बात काही आपने । बहुत बधाई आपको ।

Comment by Parveen Malik on July 18, 2013 at 10:19am

जो दीखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ... झूट फरेब का मिश्रण भी होता है ..

बहुत सही व्याख्यान ... बधाई !

Comment by coontee mukerji on July 17, 2013 at 7:58pm

शायद इसी को प्रगति कहते है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 17, 2013 at 7:15pm

मैकेनाइज्ड ज़माने में प्रेम के मैकेनाइज्ड रूप और फरेब पर सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई आ० संदीप जी 

कृपया ध्यान दे...

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