For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है

क्षुद्र बुद्धि और है पराक्रम भी क्षुद्र आज ज्ञान से मनुष्य ने बना ली बड़ी दूरी है
मायावी प्रपंच से प्रभावित हैं जन सभी कलि पाश दृढ हुआ यही मजबूरी है
शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक अप्रकाशित

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 19, 2013 at 4:06pm

बहुत बहुत आभार  D P Mathur  जी 

Comment by D P Mathur on June 19, 2013 at 8:01am

आदरणीय वाजपेयी जी सच धनवान तो येन केन प्रकरेण हो ही जाते हैं पर साधना का ज्ञान अंतिम समय तक अधूरा ही रह जाता है यही अधिकांश मानवो के जीवन की सच्चाई है आपको बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 17, 2013 at 10:39am

बहुत बहुत आभार विजय मिश्र जी अभिभूत कर दिया आपने मम्मट की उक्ति का स्मरण हो आया आपकी प्रतिक्रिया से.....आचार्य मम्मट ने भी यही कहा है 'नियतिकृत नियम रहिताम ह्लादैकमयीमनन्य परतन्त्राम नव रस रुचिराम निर्मित मा दधती भारती कवेर्जयति' पुनः आभार 

Comment by विजय मिश्र on June 15, 2013 at 7:03pm
"शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है |" - इस पंक्ति ने तो मानो इस 'भ्रष्टयुग' की [यह तो ब्रह्मा की भी कल्पना से आगे जा रहा है]पूरी व्याख्या ही कर दियी है .आजका आदमी सचमुच शाश्वत से दूर जाकर अपनी निरीहता पर रो भी रहा है और भटकन में बिश्वास भी करता है .ऋषिओं के लाखों वर्ष की तपस्या ने जो अमर फल प्राप्त किये ,जिसमें देवत्व सिद्धि की शक्ति है वही है परम्परा क्योंकि इन्हें साधकर मनुष्य परम के पार जाने की भी अंतर्दृष्टि पा लेता है .मन मोह लिया आपकी इस पंक्ति ने .साधुवाद आशुतोषजी .
Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 14, 2013 at 9:49pm

हार्दिक आभार Kewal Prasad जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 8:57pm

आ0 आशुतोष भाई जी,  अतिशय सुन्दर छन्द।  पापियों का पाप से उध्दार भी जरूरी है।  शानदार भावाभिव्यक्ति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।    सादर,

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 14, 2013 at 3:58pm

बहुत बहुत आभार aman kumar जी

Comment by aman kumar on June 14, 2013 at 10:53am

शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है 
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है |

आप ने धार्मिक मन्येताओ को सामाजिक प्रपंचो से जोडकर अपनी विशेस लेखन कला की छाप दी है ! 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 14, 2013 at 10:06am

बहुत बहुत आभार कुंती जी 

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:32am

खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है..........बहुत  सटीक कलयुग का वर्णन किया है आशुतोश जी .सादर / कुंती  .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service