For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बन्द पड़े-से लॉकर हैं सब - ग़ज़ल

अपने अपने भीतर हैं सब
चिेकने-चुपड़े बाहर हैं सब

किस की प्यास बुझा पाएँगे
इ्क टूटी-सी गागर हैं सब

कौन समझ पाएगा इनको
बस प्याले में सागर हैं सब

छुप लें लाख नकाबों में वो
पर करतूतें उजागर हैं सब

बाँट रहे हैं जह्‌र सभी को
बनते किन्तु सुधा्कर हैं सब


जिन कलियों में रंगो-बू है
उनके ही सौदागर हैं सब

काम वक़्त पर क्या आएँगे
बन्द पड़े-से लॉकर हैं सब

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 370

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shyamskha on March 21, 2013 at 4:48am

स्नेहिल योगी जी ब्रजेश जी, केवल प्रसाद एवम्‌ वीनस भाई आज ही प्रवास अमेरिका व मे़क्सिको से लौटा हूं तो गज़ल पर आपके स्नेहिल उदगारों से रूबरू हुआ। आप सभी का आभा

Comment by Yogi Saraswat on March 20, 2013 at 3:26pm

छुप लें लाख नकाबों में वो
पर करतूतें उजागर हैं सब

बाँट रहे हैं जह्‌र सभी को
बनते किन्तु सुधा्कर हैं सब

sundar alfaaz

Comment by वीनस केसरी on March 20, 2013 at 12:03am

जिन कलियों में रंगो-बू है
उनके ही सौदागर हैं सब

काम वक़्त पर क्या आएँगे
बन्द पड़े-से लॉकर हैं सब

वाह आदरणीय आपकी इस ग़ज़ल की जो तारीफ़ करूँ कम होगी .....शानदार

Comment by बृजेश नीरज on March 19, 2013 at 6:07pm

बहुत बेहतरीन! हर शेर लाजवाब!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 10:42am

आदरणीय श्यामसखा जी, आपकी गजल मुझे बहुत अच्छी लगी।  बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service