For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सांझ की पंचायत में..
शफ़क की चादर में लिपटा
और जमुहाई लेता सूरज,
गुस्से से लाल-पीला होता हुआ
दे रहा था उलाहना...

'मुई शब..!
बिन बताये ही भाग जाती है..'
'सहर भी, एकदम दबे पांव
सिरहाने आकर बैठ जाती है..'

'और ये लोग-बाग़, इतनी सुबह-सुबह
चुल्लुओं में आब-ए-खुशामद भर-भर कर
उसके चेहरे पे छोंपे क्यूँ मारते हैं?"

उफक ने डांट लगाई-
'ज्यादा चिल्ला मत..
तेरे डूबने का वक़्त आ गया..'

माँ समझाती थी-
"उगते सूरज को तो सभी अर्घ्य देते है.."
- डूबते को क्यूँ नहीं देता अर्घ्य कोई.....

Views: 589

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विवेक मिश्र on June 22, 2011 at 10:56pm
धन्यवाद अश्वनी शर्मा जी.
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 26, 2011 at 10:58pm
uttam badhai
Comment by विवेक मिश्र on November 8, 2010 at 5:46pm
टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार नीलम जी.
Comment by Neelam Upadhyaya on November 8, 2010 at 4:36pm
विवेक जी, बहुत ही बेहतरीन रचना है । इसके लिए बहुत बहुत बधाई । एक छठ ही ऐसा त्यौहार है जिसमें डूबते सूरज को भी अर्घ्य दिया जाता है । लेकिन इसके बाद उगते सूरज को भी अर्घ्य देते हैं ।
Comment by विवेक मिश्र on October 29, 2010 at 12:52am
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिनव जी.
Comment by Abhinav Arun on October 27, 2010 at 3:15pm
बहुत खूब !! सुंदरतम अभिव्यक्ति का विरला अंदाज़ ख़ास है ,विवेक जी बेहतरीन रचना | मुबारक हो !!
Comment by विवेक मिश्र on October 27, 2010 at 2:06am
आपकी टिपण्णी का शुक्रिया, गणेश भाई. मुझे खेद है कि कठिन शब्दों के प्रयोग के कारण, इस नज़्म को समझने में दिक्कत हुई. भविष्य में इसका ध्यान रखने का प्रयास करूँगा. फिलहाल के लिए, उर्दू के कठिन शब्दों के मायने लिख रहा हूँ.
शफ़क=सूर्यास्त की लालिमा, सहर=सुबह/प्रातःकाल, आब-ए-खुशामद=चापलूसी के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला जल, उफ़क=क्षितिज.
इसके लिए भी मैं अपनी कठिन भाषा को ही दोषी मानूंगा कि मेरी लिखी पंक्ति "डूबते को क्यूँ नहीं देता अर्घ्य कोई....", आपकी सहमति नहीं बटोर पाई. यहाँ 'डूबते को अर्घ्य देने' से मेरा आशय सूर्य के डूबने से नहीं, अपितु 'असफल व्यक्ति' से है. वो कहते हैं न कि "सफल व्यक्ति के सौ पिता होते हैं, परन्तु असफल व्यक्ति का कोई नहीं होता"

'ओइसे छठी के त्यौहार में डूबत सूरुज के अरग दियाला, इ हमरो के पता बा. आखिर हमनी के एकही नु जिला के हईं जा... :-D'

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 5:29pm
बहुत ही बढ़िया रचना, कठिन उर्दू शब्दों का प्रयोग थोड़ी रचना को समझने मे परेशानी उत्पन्न कर रही है, जहा तक समझ मे आई, अच्छी रचना लगी |
माँ समझाती थी-
"उगते सूरज को तो सभी अर्घ्य देते है.."
- डूबते को क्यूँ नहीं देता अर्घ्य कोई....

विवेक भाई मैं इन दो पक्तियों से सहमत नहीं हूँ, मैने एक भोजपुरी रचना लिखी है जो जल्द ही पोस्ट करूँगा ....उसकी चंद पक्तियां यहाँ लिखना श्रेयष्कर होगा..........
सगरी जहां मे जवन कही न होला,
होला U P बिहार मे ,
डूबत सूरुज के अरग(अर्ध्य) दियाला,
छठी के त्यौहार में,
Comment by विवेक मिश्र on October 23, 2010 at 8:49am
चतुर्वेदी सर & राणा भाई- आप लोगों को मेरा यह प्रयास पसंद आया, तो लिखना स्वयं में सार्थक सिद्ध हुआ.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 22, 2010 at 7:16pm
विवेक भाई,नए नए बिम्बों से सजी यह रचना पसंद आयी| बधाई हो|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service