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मौसम त्योहार का ओर तुम

हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो 

मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो 

मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो  

हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो 

प्रेरणा न बन सको तो कोई फरक नही
लेकिन किसी सन्मार्ग में कंटक तो न बनो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो 

मै आज हूँ बस आज और अभी
गुजरे हुये पलो  से मेरी तुलना तो न करो 

भविष्य से मेरा कोई सम्बन्ध है कहा 

वर्तमान को ही मैंने जीवन कहा 

हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो 

मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो 

मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो

एकल जुगत एकल जगत एकल ही आवागमन 

ये भीड़ जो है दिख रही इसको बस मृग मरीचिका गहो

मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो 

मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो

नवसर्ग नवप्राण नवउद्यम रचो  

हरपल नव  सृजन के प्रणेता बनो 

मुझ से तो तुम बस सहयोग ही करो 

मानव जनम मिला है तत्सम आचरण करो
हठ धर्मिता तुम्हारी तुम ही धरो  

.

मौलिक व् अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 22, 2020 at 12:29pm

आदरणीय चेतन जी ने बिलकुल सही सलाह दी है...अच्छा पढ़ेंगे सुधार अपने आप आ जायेगा।

Comment by Chetan Prakash on November 20, 2020 at 5:36am

  

भाई, डाॅ अरण कुमार शास्त्री, आपकी कविता अथवा काव्य- लेखन इस्लाह से नही, मुक्त छंद अथवा अतुकांत कविता के अच्छे काव्य के अध्ययन से सुधर सकता है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी मे टी. एस एलिएट, हिन्दवी ( हिन्दुस्तानी, उर्दू ) में कैफी आज़मी, साहिर लुधियानवी, और हिन्दी काव्य में महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, हीरानंद सच्चिदानंद वात्साययन अज्ञेय, धूमल, बाबा नागार्जुन, मुक्तिबोध और गोपाल दास नीरज का अध्ययन कीजिए, आप स्वयं समझ जाएंगे मेरा सुझाव आपके लिए कितना उपयोगी है।

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 19, 2020 at 1:26pm

परम आदरणीय समर साहेब आभार , आ . चेतन जी की प्रतिक्रिया को आपने सहमती  दी , धन्यवाद , लेकिन संशोधन व सुधार करने का रास्ता तो आपसे ही सीख सकूंगा न // हे अग्रज ! आशा है तत्सम - असीस मिलेगा ! ओइम ओइम !!   

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 19, 2020 at 1:21pm

आ ० चेतन जी सादर प्रणाम , आपकी प्रतिक्रिया हेतू आभार - कृपया इसमें सुधार व संशोधन का उपाय भी देते तो ?

मै तो एक अपरिपक्क्व लेखक हूँ , आपके वचनो से राहत मिली //  

Comment by Samar kabeer on November 18, 2020 at 7:07pm

जनाब डॉ. अरुण कुमार शास्त्री जी आदाब, रचना पर बधाई ।

जनाब चेतन प्रकाश जी से सहमत हूँ ।

Comment by Chetan Prakash on November 18, 2020 at 6:53am

डाॅ अरुण कुमार शास्त्री, शुभ प्रभात ! कविता की भाषा असंयमित प्रतीत हुई। और, कदाचित, एकरूपता का अभाव भी भाषा मे जान पड़ा।

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