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सुखी सवैया (सगण x 8 + लघु + लघु ) एक प्रयास.

फिरि आवत जावत जाकर आवत, आवत है ऋतु ठंड कि ये पुनि/

फिरि सुर्य छिपा अरु धुंध बढ़ी, बदली दिखती नभ में बिछि ये पुनि/

सब लोग लिए कर कंपन कुम्पन, तांक रहे नभ में रवि को पुनि/

अरु सुर्य लगे धरती पर से, निकला सुबहा नभ में शशि है पुनि//

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 8:31pm

सादर, आदरणीय अशोक भाई.

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 17, 2012 at 8:21pm

आदरणीय सौरभ जी

                       सादर प्रणाम, सही है फिरि और पुनि का घालमेल प्रथम पद में अधिक समझ आ रहा है.रूचि है तो शब्द ढूंढने कष्ट नहीं आनंद ही आएगा. आगे से अवश्य ही इस पर आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन लूँगा. आपने त्रुटियों को इंगित कर जों मदत कि है उसके लिए सादर हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 17, 2012 at 10:51am

आपका प्रयासरत होना आपको बधाई का पात्र बनाता है.फिरि और पुनि के बीच घालमेल बन रहा है. पुनि का उतना बढिया प्रयोग नहीं हो सका है, आदरणीय. वैसे गणों पर निबद्ध शब्दों को ढूँढना ही कठिन है फिर उनका प्रयोग थोड़ा कष्टकर अवश्य है. परन्तु, यही तो पद्य-साधना है.

अब चूँकि यह प्रस्तुतिकरण एक सहज प्रयास ही है तो इस तरह को देख-दिखवा लिया करें.

सादर

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