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पुरोधा कौन — डॉo विजय शंकर

मूर्खता विद्व्ता के सर पर ताण्डव कर रही है ,
सर के अंदर छुपी विद्व्ता संतुलन बनाये हुए है ,
क्योंकि मूर्खता में कोई वजन नहीं है ,
विद्व्ता शालीन है , संयत है , संतुलित है
आराम से मूर्खता को ढोये जा रही है ,
क्योंकि यही युग धर्म है आज , शायद ,
कि वह मूर्खता को शिरोधार्य करे ,
उसे नाचने के लिए ठोस मंच दे , आधार दे।
युगदृष्टा जाने विद्व्ता ने शायद ही कभी
मूर्खता का पृश्रय लिया हो , उसे आधार बनाया हो।
भाषा वैज्ञानिक स्वयं भ्रमित हैं कि चतुर कौन है ,
पूज्य कौन है ,विद्व्ता या मूर्खता ?
सम्प्रति तो मूर्खता ही पुरोधा बन स्थापित है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2019 at 10:48am

आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , रचनाओं पर आपकी उपस्थिति का इन्तजार रहता है , आपकी विवेचना से तसल्ली हो जाती है कि जो लिखा है वह ठीक है , मान्य है , आपका बहुत बहुत आभार और आपकी सद्भावनाओं के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 7:40am

आली जनाब डॉ. विजय शंकर जी आदाब,आपने अपनी रचना में जो गहरे और सटीक तंज़ किये हैं,वो क़ाबिल-ए-दाद हैं,इस शानदार रचना पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 3, 2019 at 7:38am

आदरणीय लक्ष्मण सिंह धामी जी , आभार के पहले बधाई आपको जो आपने इस रचना को मान दिया। अब रचना पर उपस्थिति एवं मान देने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2019 at 4:25pm

आ. भाई विजय शंकर जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

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