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अकेलापन —डॉo विजय शंकर

जिंदगी जीने का मौक़ा ,
भीड़ से निकल कर मिलता है ,
माहौल कुछ इस कदर
असर करता है।
अकेले हों तो ख़ुद से बात
करने का मौक़ा मिलता है l
भीड़ में तो आदमी बस
दूसरों की सुनता है।
हर आदमी कोई न कोई
सवाल लिए मिलता है ,
आपको अपनी सुनाता है ,
फिर भी आपके जवाब
को कौन सुनता है ?
शायद इसीलिये अकेलापन
आपको बहुत कुछ सीखने
समझने का मौक़ा देता है।
जिंदगी जीने का मौक़ा तो
भीड़ से निकल कर ही मिलता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 5, 2019 at 10:29am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , रचना को मान देने और बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 5, 2019 at 9:20am

आ. भाई विजय जी, उत्क्रिष्ट रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 5, 2019 at 9:11am

आदरणीय सुश्री ( डॉo ) गीता चौधरी जी , रचना आपको पसंद आयी जानकर अच्छा लगा , आभार। आपने कविता पर ध्यान दिया और शीर्षक ‘ अकेलापन’ में अनुभव हो रही नकारात्मकता की ओर संकेत किया। यह बात मुझे भी खटक रही थी , विकल्प के रूप में एक अन्य शीर्षक , ‘भीड़ से हटकर ’ पर ध्यान गया भी पर फिर मैंने इसे ही अपना लिया क्योंकि मैंने अकेले होने के महत्व या अकेलेपन के महत्व का ही निरूपण किया है। मैं अपने प्रयास में सफल भी हूँ यह आपने ने भी माना है। अतः यह
शीर्षक सही है। नकारात्मकता को सकारात्मकता दे पाना भी एक धनात्मकता है , आशा है आप सहमत होंगी।
आपको धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on November 4, 2019 at 8:47pm

आदरणीय डा० विजय शंकर जी सादर प्रणाम, बहुत भाव एवं अर्थ समेटे है आपकी ये पंक्तियाँI , सर बहुत बधाई! पर अकेलापन एक नकारात्मक सा शीर्षक लग रहा है, जबकि बड़े ही सकारात्मक द्रष्टिकोण से आपने लिखा हैI

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