For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

ग़ज़ल-  8 + 8 + 8   (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की 

जीवन नैया  पार हुई बस  उस केवट से 

कसकर थामी  जिसने  भी पतवार  समय की 

आलस छोड़ो  साहस धारो  कर्म करो तुम 

उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की 

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे  जिस दिन बरखुर्दार समय की 

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की 

अवसर देता  वक़्त सभी को  नृप बनने का

दुर्भागी  ठुकरा देते  मनुहार  समय की

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के                                 भावी = भविष्य काल 

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की  

तुम 'खुरशीद' उजाले बोते  जाओ हर पल 

जीतोगे तुम  इक दिन होगी  हार समय की 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 10:21am

आदरणीय सौरभ सर ,आपका स्नेहमयी आशीर्वाद ही मुझे निरंतर अच्छा और विशुद्ध लिखने को प्रेरित करता रहता है |सादर आभार |मैं आपकी विवेचना का तनिक भी खंडन नहीं करना चाहता ,अपितु दृढ़ हूं कि --रोला में --क़) ११--१३ के विश्राम के साथ २४ मात्राएँ हो        ख )अंत में २१  वर्जित हो ग )समप्रवाहिता की रक्षा हेतु  ११ वाले खंड के बाद एक त्रिकल रखा जाये |घ ) कहीं कहीं ८-८-८ तथा १२-१२ की यति का भी विधान है | लेकिन मैं कुछ संशयों पर मार्गदर्शन का अभिलाषी हूं |

१.शास्त्रों के अनुसार समरसता (monotony)  की रक्षा हेतु दो तरह की यति का विधान है ,  क़ ) पादांत यति  ख ) अंतर्यति  

"किंतु भाव एवम् विचारों के अनुसार शास्त्र निश्चित स्थानों के अतिरिक्त जो यति दी जाती है वह अर्थ यति है" ( आदरणीय गौरीशंकर मिश्र 'द्विजेन्द्र ' , छंदों-दर्पण ) अर्थ यति हेतु प्राचीन आचार्यों  ने कोई विशिष्ट नियम नहीं बाँधें हैं ,यह रचनाकार को भावानुकूल स्वछंदता प्रदान करती है ,यथा --क़ )जीवन की \सुखदायिनी \प्राणाधिके \प्राणप्रिये (गुप्त )में हरिगीतिका की  १६-१२ की यति भंग करते हुये ,अर्थ यति  अनुसार ७-१४-२१-२८ की यति ली है | ख )   नीचे जल था \ऊपर हिम था \एक तरल था \ एक सघन (प्रसाद ) में ताटक की १६-१४ की यति के विपरीत ८-८-८-६ की अर्थ यति ली है |

२.तेज कृ \सानु  दोष महि \षेसा   और वसन वि \चित्र  पाँवड़े \परहीं   में  अनिवार्य लघु की पदों के मध्य टूटन देखने को मिलती है |

३. किसी पेड़ पर \नहीं चाँदनी \----मन पंछी कित \  ना उदास  है (क़तील शिफाई ) में गुरु की भी रुक्नो में टूटन देखने को मिली है |

मेरे संशय मेर अत्यधिक \अनावश्यक अध्ययन से ही निर्मित हुये है |स्वाध्याय की अति ने शायद मेरी मति को हर लिया हो |समाधान स्वरूप इसे या पूर्व रचना को रोला मात्रिक न कहकर यदि रोला -आधृत सुगम ग़ज़ल कहूँ तो शायद मुझे आपका  आशीर्वाद अनवरत मिलता रहेगा | मैंने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है ,क्यूंकि मैं  आदरणीय अग्रजों की इस्लाह को निर्विवाद रूप से स्वीकार्य मानता हूं ,यह सब केवल नये साधकों के मार्गदर्शन हेतु निवेदित किया गया है | 

मैं आपको आश्वश्त करता हूं कि रचनाओं में शास्त्रीय विधानों का यथा संभव मान  रखने का प्रयास करूंगा |पुनः हृदय -तल से सादर आभार के साथ स्नेहाकांक्षी -अनुज 

 

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 9:21am

आदरणीय विजयशंकर सर ,ग़ज़ल आप तक पहुँची , इसका लिखा जाना सार्थक हुआ |हृदयतल से आभार |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 3, 2015 at 11:05am
पल पल में गुजर जाता है,
चाहे तो भी न ठहर पाता है।
सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, बधाई , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2015 at 6:38am

आदरणीय ख़ुर्शीद भाई, आपकी कहन जब उछाह में हो न .. तो बस बहा ले जाती है !
आपकी प्रस्तुतियों पर आने में विलम्ब भले हो जाय, भइया,  पर मैं बाट जरूर जोहता रहता हूँ.

इस प्रस्तुति को ग़ज़ल के तथाकथित मानकों पर रख कितना प्रतिशत ग़ज़ल कहूँ, यह साझा करना मेरे लिए भी सहज नहीं है. लेकिन देसी रचनाओं की अंतर्धारा को क्रोड़ में समेटे यह ग़ज़ल भावभूमि की वह हरीतिमा तारी करती है, जिससे हो कर बहती हुई मनोरम बयार बस मद्धिम-मद्धिम बतियाती चली जाती है - हौसले देती हुई, ऊँच-नीच समझाती हुई !
बधाई-बधाई-बधाई !

अब प्रस्तुति के शिल्प पर.. एक बार अपने पहले भी किसी ग़ज़ल के बर्ताव को लेकर ’मात्रिक रोला’ जैसा कुछ लिख दिया था और मैं समझ नहीं पाया था, आपके भरसक समझाने के बावज़ूद. फिर वही कुछ हुआ है.
भाईजी, मिसरे के वज़न को बारह ग़ाफ़ का क्यों नहीं कहें ? क्यों कि आठ-आठ मात्राओं की यति का कई जगह अतिक्रमण हुआ है. तब तो शिकस्त को ही मुँह की खानी पड़ी न ? फिर इस शिकस्ते नारवा का हम क्या करें ! मगर नहीं.. यह फेलुन फेलुन.. पर सधी ग़ज़ल है, ऐसी कोई सूरत नहीं बनती यहाँ. फिर स्वयं पर आपने यह ’बवाल’ क्यों मोल लिया है ? और रोला की सही बात करूँ तो उसकी शास्त्रीयता मात्र २४ मात्राओं तक सीमित नहीं है. ११-१३ को भी मैं उसका ’अनिवार्यतम’ हिस्सा मानता हूँ.

जय-जय !!

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 12:44am

आदरणीय शरद सिंह जी , रचना पर स्नेह बरसाने हेतु सादर आभार |मेरी समझ से मैंने इसमें भविष्यकाल को एक सघन वन माना है , जैसे जैसे समय की तलवार चलती है भविष्य काल वर्तमान \भूत में बदल जाता है अर्थात नष्ट हो जाता है ,अनंत भावी-वन काटकर भी समय की तलवार भौथरी नहीं होती है |

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के                               

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की  

शायद मेरे भाव आप तक पहुँचे हो ,यदि कल्पना थोड़ी भी भाए तो कृपया स्नेह बरसावें |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 12:35am

आदरनिये मिथिलेश जी , आदरणीय राहुल डांगी जी आप का हृदयतल से आभार |आपने रचना को इतना सरसरी से पढ़ा |आपका कहना वाज़िब है , आलोच्य पंक्ति में "तुम" अतिरिक्त हर्फ़ है ,यह टाइपिंग त्रुटि से नहीं हुआ है , यहाँ दो  मात्रा ज्यादा हो गई है |कृपया इसे "कद्र करोगे जिस दिन बरखुर्दार समय की "  के रूप में स्वीकार करने की कृपा करें |एक बार पुनः सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 12:28am

आदरणीय  हरिप्रकाश सर  जी ,गोपालनारायण सर जी ,शिज्जू  शकूर सर जी , दिनेश कुमार सर जी ,सोमेश कुमार जी कंवर करतार सर जी  आप सभी का हृदय की गहराइयों से आभार और अभिनन्दन |आप सभी का स्नेह मेरे लिए अनमोल है |मुझे कभी इस दौलत से वंचित मत कीजियेगा |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 12:22am

आदरणीय श्याम नारायण जी , हृदयतल से आभार |

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 10:26pm
कद्र करोगे तुम जिस दिन बरखुर्दार समय की
आदरणीय मुझे इस मिसरे में २ मात्रा जादा लगी अगर आप इसकी गिनती समझा दे तो बडी मेहरबानी!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 10:22pm
आदरणीय क्या खूबसूरत गजल कही है! दिल बाग बाग हो गया! वाह! नमन आपकी लेखनी को!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
59 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
3 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
7 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service