For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल-मनोज अहसास

2×15

तदबीर लगाकर कुछ सोचो तहरीरों से बहलाओ मत,
अपने वादे जब याद नहीं तो किस्से नए सुनाओ मत।

लालच पर आधारित निष्ठा दुख देगी निश्चित इक दिन,
झूठी कथा लक्कड़हारे की बच्चों को सिखलाओ मत।

जीना मुश्किल कर देंगे जब होगी इनकी सोच अलग,
सबसे गहरे मित्रों को भी दिल के राज बताओ मत।

सच्चा इतिहास न जाने क्या था न जाने हालात थे क्या,
सदियों पहली बातों पर अब घर में आग लगाओ मत।

तेरा वादा सबको रोटी देने का है ओ मालिक,
चार दिनों से बरस रहे हो अब पानी बरसाओ मत।

ऐसे तो मिट ही जाएगी जुम्मन अलगू की यारी,
रिश्तो की जंजीर पहनकर न्याय का मान घटाओ मत।

सोच भले ही गलत न हो पर पक्षपात की महक उठे,
जिसमें सबका साथ न हो ऐसे कानून बनाओ मत।

सब फूलों की अपनी महक है हर डाली का अपना रूप,
अपने हरे-भरे गुलशन में वहम के पेड़ लगाओ मत।

आग से आग बुझा करती तो आग से कोई क्यों जलता,
पेज अतीत के खोलके लोगों में दहशत फैलाओ मत।

कोई ऐसी दीवार नहीं जो दिल को जुदा कर दे दिल से,
हर पल हम तुम साथ खड़े हैं बिल्कुल भी घबराओ मत।

आज सियासत देश की यारों इसी बात पर चलती है,
झूठ को पंख लगा के उड़ाओ सच्ची बात बताओ मत।

अपनी रोटी सेक रहे हैं मेरा चमन जलाकर वो,
नफरत को सीने से मिटा दो बहकावे में आओ मत।

यह कैसा दस्तूर है तेरा दुनिया वाले बता मुझे ,
दिल देकर दिल में कहता है ,कोई चाह लगाओ मत।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 352

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 28, 2020 at 4:55pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार इस गजल पर एक मित्र ने यह कहा है कि इसमें कुछ मिसरों मैं मात्रा अधिक हो गई है कृपया इसको एक बार और इस्लाह की दृष्टि से देखें आशीर्वाद बनाए रखिए सादर आभार

Comment by Samar kabeer on January 28, 2020 at 3:27pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service