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कैसा घर-संसार?

दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।
ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने लगा।
माताजी-पिताजी के सांसारिक लोभ ने बेटे को अनुराधा और लव-कुश को छोड़ दूर किसी और शहर जाने पर विवश कर दिया। सब ठीक-ठाक ही चल रहा था लेकिन जल्द ही नये शहर, नयी नौकरी के साथ-साथ समीर जी को प्रेम भी नया हो गया।
एक ओर माताजी-पिताजी नोटों की चकाचौंध में होश खो चुके थे तो दूसरी ओर बेटे को इश्क का नशा चढ़ गया।
समीर जी पैसे से धनी होने के साथ-साथ दिल से भी धनी होते जा रहे थे। याद ही नहीं रहा कि उनका एक खुशनुमा घर-संसार है, जिसके ना होने पर सब खोखला हो जाएगा।
एक बार अनुराधा पर दिल हारे थे अबकी बार दीप्ति पर हार बैठे। दीप्ति मैडम के ये बॉस अपनी पहली प्रेमिका, जो अब इनकी पत्नि बन चुकी थी, जिसके साथ मिलकर इन्होंने एक प्यारा सा, छोटा सा घर-संसार बसाया था, जिसमें दो राजकुमार भी थे जिन्हें माता-पिता दोनों की ज़रूरत थी, वो भी याद नहीं रहे।
माताजी को कुछ नोट क्या ज़्यादा मिलने लगे, उनके लिए यही काफी हो गया था कि रिश्तेदारी में, समाज में, इज्जत में चार चाँद लग गये, कि उनका सुपुत्र औरों की तुलना में दोगुना कमाता है।
समीर साहब पर नया प्रेम ऐसा रंग चढ़ा गया कि अब उनका घर-संसार दीप्ति जी बन गयीं। अनुराधा का घर-संसार लव-कुश और लव-कुश का घर-संसार अनुराधा।
माताजी-पिताजी आज अपने हँसते-खेलते घर-संसार को बेटे की कमाई से ताजमहल बनाने का आनन्द ले रहे हैं। एक प्यारा सा घर-संसार, तीन भागों में बँट गया।

मौलिक व् अप्रकाशित।

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Comment by Usha on November 19, 2019 at 9:08am

आदरणीय विजय शंकर सर, आजकल ऐसे दृश्य आम होते जान पड़ रहे हैं। सौहार्द, नैतिकता व् प्रेम पूर्ण रिश्ते ख़त्म नहीं हुये हैं लेकिन इस तरह की दर्द भरी दास्तानें भी अब कम नहीं। काश ! ऐसे दृश्य और ना बढ़ें। आपने मेरी लघु कथा पर सकारात्मक टिप्पणी कर पुनः मुझे प्रोत्साहित किया है। आभार। सादर सर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 18, 2019 at 11:11am

आदरणीय सुश्री उषा जी , आज के घोर सांसारिकता पूर्ण युग में एक अत्यंत संवेदन शील मानवीय विषय पर लिखी आपकी लघु - कथा बहुत कुछ सोचने को उन्मुख करती है। गंभीर एवं सार्थक लघु - कथा के लिए बधाई , सादर।

Comment by Usha on November 18, 2019 at 8:43am

आदरणीय समर कबीर साहब, मेरी लघु कथा का प्रयास आपको पसंद आया, मेरे लिए हर्ष का विषय है। जी सर अवश्य विधा लिखना ज़रूरी है, भविष्य में ख्याल रहेगा। आभार। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2019 at 3:04pm

मुहतरमा ऊषा जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें ।

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