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अभी-अभी 
उतरी आँगन में 
धूप गुनगुनी, 
अभी-अभी 
खोले हैं 
सपनों की तितली ने पर,
अभी-अभी 
खुद सोनपरी नें 
रची रंगोली,
अभी-अभी 
बस ओस 
गुलाबी पंखुड़ियों पर 
आ ठहरी है, 
अभी-अभी 
फूटा है अंकुर 
हरसिंगार का,
अभी-अभी 
सीपी में दमका है इक मोती,
अभी-अभी नन्हे चूजे नें 
पकड़ कवच 
झाँका है अम्बर,
अभी-अभी 
एक नम सी बदली 
संग हवा के बह आई है,
अभी-अभी 
बहती नदिया से 
भीगा है फिर पत्थर तट का,
अभी-अभी 
मुस्कान सहेजे 
उमड़ा है एक नन्हा आँसू 
नयन कोर पर,
अभी-अभी 
चमका है
एक सुनहरा तारा,
अभी-अभी 
खनकी है मन में 
इतराती सी मधुर हँसी,
अभी-अभी 
फिर बचपन में 
जीवन लौटा है,
अभी-अभी 
आई है खुशबू 
संदल जैसी दूर कहीं से,
अभी-अभी 
बाहों में भर कर 
माँ नें चूम लिया माथा 
अपनी लाडो का...
अभी-अभी बस 
अभी-अभी
मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by narendrasinh chauhan on May 4, 2019 at 6:06pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी,खूब सुन्दर रचना 

Comment by नाथ सोनांचली on May 2, 2019 at 6:36pm

आद0 डॉ प्राची सिंह जी सादर अभिवादन। बहुत ही बेहतरीन रचना बन पड़ी है। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Sushil Sarna on May 2, 2019 at 4:41pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी गहन भावों से युक्त इस प्रभावी सृजन के लिए दिल से बधाई।

Comment by narendrasinh chauhan on May 2, 2019 at 4:10pm

खूब सुन्दर रचना 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2019 at 4:09pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी 

Comment by Samar kabeer on May 2, 2019 at 11:58am

मुहतरमा डॉ. प्राची सिंह साहिबा आदाब,बहुत उम्द: रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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