For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८४

2212 1212 2212 12

अच्छे बुरे का बार है सबके ज़मीर पे
ख़ुद को जवाब देना है नफ़्से अख़ीर पे //१

रख ले मुझे तू चाहे जितना नोके तीर पे
मरने का ख़ौफ़ हो भी क्या दिल के असीर पे //२

कुछ रह्म तो दिखा मेरे शौक़े कसीर पे
पाबंदियाँ लगा न दीदे ना-गुज़ीर पे //३

यकता है इस जहान में क़ुदरत की हर मिसाल
तामीरे ख़ल्क़ मुन्हसिर है कब नज़ीर पे //४

कोई बनाए हुस्न को तेरे भी पाएदार
वरना निशाना क्या लगे हद्फ़े शरीर पे //५

देता है बख्त किसलिए मुझको जहाँ का ग़म
दुनिया का कुछ असर नहीं होता फ़क़ीर पे //६

करना बसर ये ज़िंदगी आसान काम है
इक सीध होके चलना है टेढ़ी लकीर पे //७

बाज़ीचा-ए-अमा से कब तक खेलना है 'राज़'
बरसाए शम्स नूर क्या ज़ुल्मत पज़ीर पे //८

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित

बार- बोझ; नफ़्से अख़ीर- अस्तित्व के आख़िर पे; असीर- बंदी; शौक़े कसीर- खंडित अभिलाषा; ना-गुज़ीर- अपरिहार्य/ आवश्यक/ लाज़िमी; यकता- बेमिस्ल, अद्वितीय; तामीरे ख़ल्क़- सृष्टि का निर्माण; मुनहसिर- निर्भर; नज़ीर- उदाहरण; पाएदार- स्थायी; हद्फ़े शरीर- ऐसा लक्ष्य जो स्थिर न हो, चपल हो; बख्त- भाग्य; बाज़ीचा-ए-अमा- अन्धकार के खिलौने; शम्स- सूर्य; नूर- प्रकाश; ज़ुल्मत पज़ीर- जिसने अँधेरे को स्वीकार कर लिया हो

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on December 24, 2018 at 9:06am

आदरणीय सुरखाब बशर साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Surkhab Bashar on December 22, 2018 at 11:35pm

जनाब राज नवादवी साहब  ग़ज़ल की बहुत उम्दा कोशिश है  वाह वाह 

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:31am

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 11:09am

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 7:28am

आदरणीय सुरेंद्र सिंह साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया, सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2018 at 9:40am

आद0 राज़ नवादवी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by राज़ नवादवी on December 17, 2018 at 3:01pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब, सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 17, 2018 at 12:26pm

यूँ कर सकते हैं:-

'कुछ रह्म तो दिखा....

Comment by राज़ नवादवी on December 17, 2018 at 12:13pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और इस्लाह का तहेदिल से शुक्रिया. बताइ गई भूल को दूर करके रेपोस्ट करता हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 17, 2018 at 11:20am

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ तो रहम दिखा मेरे शौक़े कसीर पे'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "रह्म"21,देख लें । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service