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जूठन - लघुकथा –

जूठन - लघुकथा –

 रघुबीर लगभग चालीस का होने जा रहा था  पर अभी तक कुँआरा था। इकलौता बेटा था इसलिये माँ को शादी की बहुत चिंता रहती थी। बाप दो साल पहले मर चुका था| माँ अपने स्तर पर बहुत कोशिश कर चुकी थी लेकिन बेटे की छोटी सी नौकरी के कारण बात नहीं बनती थी।

उसकी पड़ोसन ने बताया कि आज अपनी जाति वालों का सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा है, अतः बेटे को बुला लो,शायद बात बन जाये।

माँ बेटा समय पर तैयार होकर सम्मेलन में शामिल हो गये। रघुबीर देखने में गोरा चिट्टा स्मार्ट बंदा था। इसलिये एक परिवार ने उसे पसंद कर लिया। उनकी लड़की भी सुंदर थी। वह भी जॉब करती थी। उसकी उम्र भी पैंतीस के आसपास थी। चूँकि दोनों ही पक्षों को लड़के लड़की की बढ़ती उम्र के कारण शादी की जल्दी थी इसलिये ज्यादा गहराई में पूछताछ नहीं हुई।

विवाह की रस्म शुरू करने से पहले  सामूहिक प्रीति भोज का आयोजन था। सब लोग व्यस्त हो गये। रघुबीर भी मदद करने लगा। रघुबीर लोगों की छोड़ी हुई   पत्तलें उठा रहा था। उसकी मंगेतर को अच्छा नहीं लगा,

"यह क्या कर रहे हो तुम। शर्म नहीं आती, लोगों की  जूठन उठा रहे हो"?

"शर्म कैसी?  मेरा तो यह रोजमर्रा का काम है"|

"क्या मतलब। क्या काम करते हो तुम"?

"शहर के सबसे बड़े होटल में वेटर हूँ"|

" मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है"?

"देखिये, आप थोड़ा जल्दबाजी में निर्णय ले रही हैं। आराम से सोचिये ? हम दोनों का काम लगभग एक जैसा ही है।

“क्या बेतुकी बात कर रहे हो? तुम्हें पता भी है मैं कितनी बड़ी कलाकार हूँ? बहुत शीघ्र मुझे फ़िल्म में काम मिलने वाला है"।

“सुनिये, भविष्य में क्या होगा, कोई नहीं जानता? कल को तो मैं भी हीरो बन सकता हूँ"।

"कल की छोड़ो, आज की बात करो"?

"वही तो आपको समझा रहा हूँ। आज की तारीख में, मैं जिस होटल में वेटर हूँ, आप भी उसी होटल की बीयर बार में नाचती गाती हो"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2018 at 4:33pm
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 5, 2018 at 12:43pm

बहुत ही करारे जवाब के साथ शीर्षक सार्थक करते हुए बेहतरीन कटाक्षपूर्ण, विचारोत्तेजक लघुकथा के लिये तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।

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