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ग़ज़ल(चरागे उम्मीद जल गया है)

(मफा इलातुन---मफा इलातुन)

किसी का लहजा बदल गया है।
चरागे उम्मीद जल गया है।

मैं क्यूँ न समझूँ इसे मुहब्बत
वह मेरा शाना मसल गया है

भला खफ़ा क्यूँ हैं आइने पर
था हुस्न दो दिन का ढल गया है।

ख़ुदा मुहाफ़िज़ है अब तो दिल का
निगाह से तीर चल गया है।

वो मिल गए तो लगा है ऐसा
जो वक़्ते गर्दिश था टल गया है।

जो बीच अपने था भाई चारा
उसे त अस्सुब निगल गया है।

मिली है तस्दीक़ उसको मंज़िल
जो खा के ठोकर संभल गया है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:46pm

मुहतरम जनाब समर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

शाना मसलने का मतलब शाना दबाना मिसरे में लिया गया है ।जब कोई खामोशी से बज़्म छोड़ कर ,रुसवाई के ख़ौफ़ से जाता है तो वो चुप चाप आशिक़ का शाना मसल(दबा) कर चला जाता है । यही शेर का मफ़हूम है।

घर के काम काज की मसरूफियत की वजह से आजकल ओ बी ओ के पटल पर वक़्त कम दे पा रहा हूँ ,ओ बी ओ से  और आप सब से दूर रह कर वाक़ई ख़ालीपन महसूस होता है । सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:32pm

जनाब राम शिरोमणि साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 7:16pm

आ. तस्दीक़ अहमद साहब,

अच्छी   ग़ज़ल हुई है 
बधाई 

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 6:26pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,बहुत दिन बाद पटल पर नज़र आ रहे हैं,कहाँ रहे भाई?

अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'वह मेरा शाना मसल गया है'

ये मिसरा कुछ ठीक नहीं लग रहा है ।

Comment by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 4:27pm

क्या कहने।।क्या अंदाज़े बयाँ है साहब।।दिली दाद

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