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करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।

पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।

पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*

आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*

शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।

नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।

सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

*संशोधित

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 30, 2018 at 4:36pm

आदरणीय समर साहब, मेरी पूर्व की टिप्पणी स्वतः स्पष्ट है । आप द्वारा प्रस्तुत स्क्रीन शॉट में भी अरकान हेतु अनुरोध ही किया गया है । विश्वास है कि आप अब संतुष्ट होंगे ।

Comment by Samar kabeer on April 30, 2018 at 3:33pm

अब फ़ैसला आप कीजिये कि क्या करें?

Comment by Samar kabeer on April 30, 2018 at 3:29pm
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 8:37am

वैसे ..एक बहुत सामयिक काफ़िया छूट रहा है क्यूँ कि ग़ज़ल में नाम न लेने की परम्परा है वरना ..
भटक रहे हैं........... साहब ..एक मिसरा हो   सकता था :-)))))))))))))))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 8:35am

आ. बाग़ी जी,
आप को मंच और ऊपर से ग़ज़ल में देखकर बहुत प्रसन्नता हुई...
समसामयिक विषयों के आक्रोश को प्रदर्शित करती अच्छी रचना है ..
सारी बातें समर सर कह ही चुके हैं ...
अरकान की अनिवार्यता नहीं है यह बात मुझे भी यहाँ की टिप्पणियों से पता चली क्यूँ कि जब मंच   से मैं  जुड़ा तब से देख   रहा हूँ कि कई वरिष्ठों ने अरकान लिखने का आग्रह किया है और मैंने भी कईयों को यही नियम है..ऐसा कहा है..
हो सकता है आग्रह को हम अनिवार्यता मान बैठे हों..
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 29, 2018 at 10:19pm

रोज़ी-रोटी , रोज़ी-रोटी पर  और समसामयिक घटनाचक्र पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया और आभार आदरणीय गणेश जी बागी साहिब।

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 9:46pm

जी, शुक्रिया ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 9:37pm

आदरणीय समर साहब, मंच का जो भी अनिवार्य नियम है वह टैब में नियम शीर्षक के अंतर्गत लिखित है । आप जो भी कह रहे हैं वह आग्रह की विषय वस्तु है न कि अनिवार्य शर्त । सादर ।

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 9:25pm

मैं जिस दिन से ओबीओ से जुड़ा हूँ यही पढ़ता आ रहा हूँ कि ग़ज़ल के साथ अरकान लिखना मंच का नियम है,इसलिये लिख दिया,आप बताएं कि क्या ये अनिवार्य नियम है? मैं और मंच के अन्य सदस्य भी जिस रचना पर विधा और विधान नहीं लिखा होता यही कहकर टोक देते हैं कि 'कृपया रचना के साथ विधा और विधान लिखने का कष्ट करें,ताकि नये सदस्यों को सीखने का मौक़ा मिले'। अब आप कृपया बताने का कष्ट करें कि क्या ये ओबीओ का नियम है?जैसे मौलिक व अप्रकाशित लिखने का नियम है?

Comment by Samar kabeer on April 29, 2018 at 8:24pm

मतले के सानी मिसरे को ग़लत पढ़ा, क्षमा चाहता हूँ ।

'चलनी' शब्द के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

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