For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुझाव / इस्लाह आमंत्रित 
.

जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है
क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?
.
क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए
टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए

तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब
इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की
बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?
.
इक  पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा
तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और
इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ
यकबयक बिखर जाएं और दिल मचल जाए
क्या तुम्हे ये लगता है तब ग़ज़ल कही जाए?

फिर ख़याल आता है आज आख़िरी दिन है
कुछ उधार चुकता कर कुछ उधार लेना है
फीस भी तो भरनी है नौकरी पे जाना है.
नौकरी ही करनी है नौकरी ही की जाए

क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?

.
और फिर अचानक ही रात के अँधेरे को
चीर कर चमकता इक जुगनू टिमटिमाता है
तब ख़याल आता है मैं तो कोरा कागज़ हूँ
लेखनी उसी की है हर्फ़ भी उसी के हैं
और ये मज़ामीं भी वो ही मुझ को देता है.
क्यूँ न फिर उसी से कुछ रौशनी भी ली जाए
उस पे ही कही जाए जब ग़ज़ल कही जाए.

.
सोचकर उसी पर कुछ मैं जो डायरी खोलूँ
कोई मेरे अंदर से मुझ को रोक देता है
और मुझ से कहता है किस पे लिख रहे हो तुम?
.
क्या तुम्हे ज़माने के दर्द का पता है कुछ
जानते हो इक ज़ालिम रोज़ ज़ुल्म करता है
जो तुम्हे खिलाता है वो ही भूखा मरता है.
एक बेवा पेन्शन की लाइनों में लगती है
दफ्तरों की मेज़ों पर अपना सर पटकती है.
शख्स वो जो ज़िन्दा है कितने फॉर्म भरता है
वो मरा नहीं अब तक कैसे सिद्ध करता है?
क्या तुम्हे इन्ही में से वो नज़र नहीं आता
जो तुम्हारे अन्दर है तुम को टोक देता है
हुस्न पर ग़ज़ल कहने से जो रोक देता है?
.
तितलियाँ नदी शाखें और इश्क़ के क़िस्से
ये वो दुनिया है जिस में जीना चाहते हो तुम.
जिस में जी रहे हो तुम वो तुम्हारी दुनिया है
काश तुम जो कह पाते इस पे भी ग़ज़ल कहते.
.
पढ़ के अपनी दुनिया का हाल तुम जो घबराओ
खुल के बात कहने से मन ही मन में शरमाओ   
जब तुम्हारे दिल में भी इक ख़लिश सी रह जाए
आह ठण्डी सी कोई चीख में बदल जाए  
और ग़ैरों की ख़ातिर आँख जब ये भर आए
तब ग़ज़ल कही जाए तब ग़ज़ल कही जाए.  

.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 20, 2018 at 8:05pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र भाई ..
आपकी दाद पा कर अभिभूत हूँ 
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on March 20, 2018 at 7:35pm

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन नज्म कही आपने। माशाआलाह क्या कहने। आप हर हुनर में काबिलेतारीफ है भाई जी। बहुत जज्बाती लिखी भी आपने। बहुत बहुत बधाई देता हूँ, इस प्रस्तुति पर सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2018 at 11:54am

धन्यवाद आ. अजय जी 
मुझे लगता है कि अगर सप्रयास लिखता तो शायद न लिख पाता... आप का, मंच का और सभी गुणीजनों  स्नेह और मार्गदर्शन   बना रहे तो संभवत: भविष्य में कुछ और बेहतर रच   सकूँ 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2018 at 11:52am

धन्यवाद आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब..
पहले तो   मैं इसे नज़्म लिखने में भी कतरा रहा था , नज़्म के विधान से मैं भी अपरिचित हूँ इसलिये सुझाव   और इस्लाह आमंत्रित बोल्ड में लिखा.. 
आपको पसंद आयी तो लिखना सार्थक हुआ 
सादर 

Comment by Ajay Tiwari on March 18, 2018 at 11:20am

आदरणीय निलेश जी,

बहुत अच्छी नज़्म हुई है. हार्दिक बधाई.

खास तौर से ग़ज़ल को लेकर आपके ख़याल बहुत समीचीन लगे, जब एक त्वरित नज़्म ऐसी है तो उम्मीद  है जल्दी ही और बेहतर नज्मे पढ़ने को मिलेगी. 

सादर 

Comment by Mohammed Arif on March 18, 2018 at 11:09am

आदरणीय नीलेश जी आदाब,

                         मैं ओबीओ के मंच पर पहली दफ़ा कोई नज़्म पढ़ रहा हूँ । नज़्म के क्या छांदसिक विधान होते हैं मैं नहीं जानता । मगर इस नज़्म को पढ़कर बेइंतिहा ख़ुशी हुई । ओबीओ के मंच पर नज़्में लगातार आनी चाहिए । आप जैसे खिलंदड़ रचनाकार ही यह काम अंजाम दे सकता है ।

                    बेहतरीन और विस्मयकारी नज़्म के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 17, 2018 at 6:44am

शुक्रिया सर

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 9:53pm

शुतरगुर्बा नज़र अंदाज़ हो ।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 9:52pm

वाह, मंज़ूम जवाब ।

आपकी ज़हानत के हम तो कब से क़ाइल हैं

इसलिये तो हम भाई इतने तुम पे माइल हैं

इस क़दर रवानी से आप शैर कहते हैं

और इस रवानी में हम मज़े से बहते हैं

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:09pm

शुक्रिया आ. समर सर,
.
अस'ल में हुआ कुछ यूँ सुब'ह टॉयलेट में था 
और मेरे मोबाइल का व्हाट्स आप चालू था.
इक ग़ज़ल किसी की जब गौर से पढ़ी मैंने
सच कहूँ तभी मेरे ज़ह'न में ख़याल आया 
क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?
.
मैंने अपने सिंघासन यानी टॉयलेट की सीट 
पर ही बैठकर वो कुछ फोन में उगल डाला 
जो भी मेरे अंदर था और थोडा जल डाला.
ये कहानी है केवल सात आठ  मिनिटों की 
जिस की ठीक से वापस जाँच मैं न कर पाया. 
.
मेरी इस खता को अब आप सब क्षमा कीजै 
या कि धृष्टता कहकर आप ही सज़ा दीजै 
आप के कहे से मैं इस को कुछ बदलता हूँ 
और फिर से ओ बी ओ पर मैं पेश करता हूँ. 
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service