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ग़ज़ल नूर की -. माँ भारती की शान में,

२२१२/२२१२
.
माँ भारती की शान में,
वो रोज़ नव परिधान में.
.
क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी
समवेत गर्दभ गान में.
.
सब हो गए कितने पतित
सोचो कथित उत्थान में.
.
हर बैंक कर देंगे सफा
वो स्वच्छता अभियान में.
.
इन्सानियत बाक़ी कहाँ 
अब है बची इन्सान में.  
.
वो माफ़िनामे लिख गये
अपना यकीं बलिदान में.
.
कैसे मसीहा देख लूँ
उस इक निरे नादान में.
.
करते दहन है खूँ फ़िशां
कत्था लगा कर पान में.
.
क्यूँ छल कपट को घर दिया
इस ज़ह’न-ए-आलिशान में.
.
पैग़ाम केवल .. प्रेम है
गीता में औ कुर’आन में.  
.
कुछ भी नहीं है फ़र्क़ “नूर” 
अल्लाह में भगवान में.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2018 at 8:00am

शुक्रिया आ. हर्ष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2018 at 7:59am

शुक्रिया आ मोहम्मद आरिफ साहब 

Comment by Harash Mahajan on March 14, 2018 at 9:20pm

वाह जनाब बहुत खूब । छोटी बहर में बेहद आज के हालात को दर्शाती...प्रेम और सिर्फ प्रेम । बहुत बहुत बधाई आ0 नूर साहब ।

सादर ।

Comment by Mohammed Arif on March 14, 2018 at 9:05pm


पैग़ाम केवल .. प्रेम है 
गीता में औ कुर’आन में. वाह! वाह!!  क्या ख़ूब शे'र कहा है । आज देश में ऐसे ही शे'र की ज़रूरत है ।

        शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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