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बाकी मैं न रहूँ न मेरी खूबियां रहें

221 2121 1221 212
आबाद इस चमन में तेरी शेखियाँ रहें ।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें ।।

नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे खुदा करे कि बनीं दूरियां रहें ।।

दीमक की तर्ह चाट रहे आप देश को ।
कायम तमाम आपकी वैसाखियाँ रहें ।।

बैठे जहां हैं आप वही डाल काटते ।
मौला नजर रखे कि बची पसलियां रहें ।।


अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने की धमकियां रहें ।।

टुकड़े वतन के होंगे यही खाब आपका ।
आज़ाद है वतन तो चढ़ी त्यौरियां रहें ।।

अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम ।
अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें ।।

हक छीनिये जनाब ये कानून पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो लाचारियाँ रहें ।।

ऊँची थी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला ।
कुछ तो तेरे रसूक की दुश्वारियां रहें ।।

कुछ लाइलाज़ रोग हैं इस संविधान में ।
दिन रात कर दुआ कि ये बीमारियां रहें ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2018 at 3:02pm

आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज जी आभार म

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2018 at 3:01pm

आ0 कबीर सर नमन । विशेष आभार। 

Comment by Samar kabeer on January 9, 2018 at 10:13pm

सही उच्चारण 'सिफ़र' है,12,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'अक्सर सिफ़र ही मिलते हैं क़ुर्बानियों के नाम'

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 9, 2018 at 9:37pm

वाह वाह आदरणीय..बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही...

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 9, 2018 at 3:47pm

मैं ऐसा करने जा रहा हूँ क्या ठीक रहेगा 

अक्सर मिले हैं सिफ्र ही कुर्बानियों के नाम ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 9, 2018 at 3:38pm

आ0 कबीर सर सादर नमन क्या सिफर का वास्तविक उच्चारण सिफ्र صفر  है । यदि इसे 12 पर लिया जाए तो शेर बहर से खारिज़ माना जायेगा आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में ।

Comment by Samar kabeer on January 9, 2018 at 2:37pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

सातवें शैर में 'शिफर' को "सिफ़र" करलें ।

नवें शैर में 'भूँखा' को " भूखा" कर लें ।

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