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नफरतों को छुपाना नहीं सीखे

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नफरतों को छुपाना नहीं सीखे।

दिल किसी का दुखाना नहीं सीखे।

चेहरे पे शिकन आज भी है पर।

दर्द किसी को बताना नहीं सीखे।

जख्म छुपाते रहे हम जमाने से ।

आंख से अश्क गिराना नहीं सीखे।

चोट इश्क में कई बार खाई पर।

प्यार में हम गिराना नहीं सीखे।

बेवफा  तुम  भले ही  बदल जाओ।
इश्क में यूँ बदलना हम नहीं सीखे।

मौलिक और अप्रकाशित

मनोज यादव

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Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 10:39am
आ. मनोज जी,
समर साहब की बातों को गौर करे,
ग़ज़ल है तो कम से कम 5 शेर जरूर रखें.. बहर दुरुस्त कर लें... ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by Samar kabeer on November 6, 2017 at 5:47pm
जनाब मनोज कुमार यादव जी आदाब,अगर ये ग़ज़ल है तो आपको इसके अरकान लिखना चाहिए,ये मंच का नियम है ।
'चोट इश्क़ में कई बार खाये पर'
इस पंक्ति में 'चोट'स्त्रीलिंग है, इसलिये 'खाये'की जगह "खाई"होना चाहिए ।
Comment by Mohammed Arif on November 6, 2017 at 5:12pm
आदरणीय मनोज कुमार जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा । इस ग़ज़ल में तो मात्र चार शे'र है और आपने ग़ज़ल के अर्कान भी नहीं लिखेंं । बधाई स्वीकार करें ।

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