For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा वो घर मुझे मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था

बह्र 1222/1222/1222/1222

अकेला ही रहा था मैं मेरा छप्पर उठाना था
हजारों लोग तब आये मेरा जब घर गिराना था

वो बोतल फेंक देते है गरम जब हो गया पानी
तड़पकर मर गया देखो जिसे पानी पिलाना था

तड़पकर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको
मोहब्बत थी तुम्हें हमसे नही तुमको छिपाना था

मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने है
ये मैंने कब कहा था की मुझे रिश्ता निभाना था


तुम्हारी ही दुआओं का असर है माँ बुलंदी पर
जहाँ मैं आज पहुचा हूँ यही तुमको बताना था

रही क्या जिंदगानी खूब फिर भी है कसक मन में
मुझे बिछड़े हुए टूटे हुए दो दिल मिलाना था

हमारी दोस्ती तो है अमीरों से मगर हमको
ये जो सड़कों पे पलते हैं उन्हें अपना बनाना था

यकी तो था 'अतुल' हमको के जिंदा है वफ़ा लेकिन
मेरा वो घर मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था
-----©महर्षि त्रिपाठी'अतुल'
**************************

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:06pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी'अतुल'जी आदाब,बहुत अर्से बाद आपकी ग़ज़ल देख कर ख़ुशी हुई ।
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

मतले के ऊला मिसरे में 'ही'की जगह "जी"कर लें तो बात में वज़्न बढ़ जायेगा ।
'तड़प कर और रो कर के बताओ क्या मिला तुमको'
इस मिसरे में 'के'शब्द भर्ती का है, इसकी जगह "ये"कर सकते हैं,और सानी मिसरे में 'मोहब्बत'ग़लत है,इसका वज़्न 222हो रहा है,जबकि सही शब्द है "महब्बत"जिसका वज़्न है 122 ।
'मुझे तो देखना ये था कि मेरे हीर कितने हैं'
इस मिसरे में अगर "हीर"राँझा वाली है तो ये स्त्रीलिंग है, देखियेगा ।
'मुझे बिछड़े हुए टूटे हुए दो दिल मिलाना था'
इस मिसरे में 'दो दिल'बहुवचन है, इस कारण रदीफ़ बदल रही है ।

'यकी तो था 'अतुल'हमको के जिंदा है वफ़ा लेकिन
मेरा वो घर मिला उजड़ा मुझे जो घर बसाना था'
इस शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,ऊला मिसरे में 'हमको'और सानी मिसरे में 'मेरा'।
बाक़ी शुभ शुभ
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2017 at 8:06pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय त्रिपाठी जी..कहीं कहीं थोड़ी कमजोर सी लगी।
Comment by Ajay Kumar Sharma on October 31, 2017 at 8:47pm
बहुत सुन्दर रचना...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service