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आईने में सिंगार कौन करे (फिलबदीह ग़ज़ल 'राज')

2122     1212  22

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दिल को फिर बेकरार कौन करे

आपका ऐतबार कौन करे

 

कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है

 ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे

 

तीर मुड़ जाएगा मेरी जानिब

 जानकर ये शिकार कौन करे

 

मैं शिनावर हूँ तैर जाऊँगा

नाव का इंतजार कौन करे

 

उनकी आँखे मेरे लिये काफी

 आईने में सिंगार कौन करे

 

जानकर ये मेरा कफस इतना

जिस्म को हद से पार कौन करे

 

होगा मेरा तो लौट आयेगा

मिन्नते बार बार कौन करे

 

जब नजर से ही काम चल जाए

तीर को  दागदार कौन करे

 

इश्क की पुरखतर सदा  राहें

हैं मगर  ये विचार कौन करे

 

चाँद तारों की आरजू है तुम्हें  

काम ये ख़ाकसार  कौन करे

 

है मुख़ालिफ़ भले लहू अपना   

रब्त को दरकिनार कौन करे  

.

-----मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on October 2, 2017 at 10:28pm

आ० अफरोज़ साहब ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सुखन नवाजी का बेहद शुक्रिया .

Comment by Afroz 'sahr' on October 1, 2017 at 2:25pm
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा आदाब अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई आपको ।सादर,,,,,

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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:24pm

आद० लक्ष्मण धामी भैया, ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया | 


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:23pm

आद० गिरिराज जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया | आद० उर्दू ग़ज़लों में सिंघार १२१ ही होता है यहाँ मैं सिंघार ही लिख रही थी जो गलती से सिंगार लिखा गया इसको दुरुस्त कर लूँगी 


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:14pm

आद० सुरेन्द्र नाथ कुशक्ष्त्रप भैया ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया | 


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:13pm

अद० विजय निकोर जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया | 


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:12pm

आद० बृजेश कुमार जी,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया | 


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:11pm

आद० रामबली भैया ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |


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Comment by rajesh kumari on October 1, 2017 at 2:09pm

आद० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 28, 2017 at 4:23pm
आ. राजेश दी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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