For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22 22 22 2

सुख दुख में सम रहता हूँ।
मैं दरिया सा बहता हूँ।।

कह कर सच्ची बात यहाँ।
तंज़ सभी के सहता हूँ।।

मिट्टी की इस दुनिया में।
मिट्टी जैसे रहता हूँ।।

जैसे को तैसा मिलता।
सच यह सबको कहता हूँ।।

तल्ख़ हक़ीक़त दुनिया की।
रोज ग़ज़ल में कहता हूँ।।



मौलिक व अप्रकाशित

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on June 28, 2017 at 5:48pm
जी आदरणीय समर कबीर जी बेहद शुक्रिया जी आपका और आपने बेहद लाजवाब उदाहरण दिया है उसके लिए बहुत बहुत आभार जी।
Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 3:03pm
जी,बिल्कुल गिरा सकते हैं,'फेलुन' को 'फ़इलुन' भी कर सकते हैं,लेकिन ये मात्रिक बह्र है, इसमें लय का विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत होती है ,जैसे मिसाल के तौर पर 'मीर' की ग़ज़ल का ये मशहूर मतला देखिये,इसके सानी मिसरे में मात्रा गिराई गई है :-

'पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने ग़ल ही न जाने,बाग़ तो सारा जाने है'
Comment by surender insan on June 27, 2017 at 2:56pm
जी आदरणीय ये 22 22 22 2 पर है जी । अरकान लिखने बारे मुझे धयान नहीं रहा जी। यह मेरी पहली पोस्ट है जी पटल पर।सादर जी।
Comment by surender insan on June 27, 2017 at 2:53pm
जी आदरणीय समर कबीर साहब जी बेहद दिली शुक्रिया जी आपका ग़ज़ल को आपने अपना कीमती समय दिया। आदरणीय क्या इस बह्र में मात्रा गिरा सकते है या नहीं।
मतले का मिसरा ए उला "उसकी22 मोज़21 में*1 रहता22 हूँ2"
क्या ये सही है या गलत है जी। दोनों शेर आपके सुझाव अनुसार करूँगा जी ।बहुत बहुत आभार जी।
Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 12:02pm
जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मंच के नियमानुसार आपने ग़ज़ल के साथ अरकान नहीं लिखे ?आपकी ग़ज़ल के अरकान हैं फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा(22 22 22 2)इस हिसाब से जब ग़ज़ल देखें तो मतले के ऊला मिसरे में मात्रा गिर जायेगी ।
दूसरा शैर इस तरह कर लीजिये लय में नहीं है :-

'शैर अगर हों आमद के
ग़ज़ल तभी मैं कहता हूँ'

'सच्ची बात कहूँ जब में
तंज़ सभी के सहता हूँ'
इस शैर के ऊला मिसरे को इस तरह कहें तो शैर का कहन मज़बूत हो जायेगा :-

"कह कर सच्ची बात यहाँ
तंज़ सभी के सहता हूँ"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 26, 2017 at 7:05pm

अगर बहर  २ २ २ २  २ २ २ है तो-----------उसकी मौज़ में रहता हूँ।---------ख़ुद हो शेर अगर आमद।----इनकी मात्राएँ फिर से देखें .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service