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चला गया ये बचपन बनके यादों का बराती

शीर्षक : चला गया ये बचपन बनके यादों का बराती

" बचपन. .. के दिन हमने भी.. थे देखे
जवानी की रातें हमने भी.. हैं काटी ..
बलखा के गिरती .. वो लाखों पतंगे ,
डगमगा के चलती हुयी.. ये जवानी... |
फुदकता-उछलता .. मन वो हमारा ..
थिरकती दिलों पे.. ये अब की रवानी ,
कि पापा के कांधे पे गुजरा..वो ऑगन..
तकिये भिगोता अब के रातों का सावन |
माँ के आँचल.. तले बीते हुये वो लम्हें ..
कि कॉलेज.. मे होते वो नयन.. ईशारे ,
कि रंगों से दिवारों पे.. चित्रकारी बनाना..
घण्टों आईनों मे .. अब खुद को सजाना ..
कि होठों से बुलबुलों.. के फब्हारे उड़ाना,
सपनों में अब संग परियों के घरौंदे बसाना ..
अब चाहिये नही मुझको ..ये बेरहम जवानी ,कि
लौटा दो हमको वो बचपन.. की खोई रवानी ||
झूमती वो खेतों की रंगत.. रातों की कहानी ,
रोने पर मिलती वो माँ की ममता भरी बिसातें ..
और बारिस मे .. चलती वों नावें हमारी !!!
भीगते बदन पे .. आती ओलों की ठंडक ..
आग लगाती ये मानों बदन मे जवानी ... !!
लौटा दो हमको, हमारी वो अनमोल निशानी ,
हाथों से क्षण-क्षण गुजरती ये जवानी ..
बन जायेगी इक दिन इसमे कोई कहानी ..
न जीकर भी मरने देगी ये मेरी जवानी !!!
जो आके .. गुजर जायेगा ये बचपन ,
न मिलने वाली ये बिसरीं यादें पुरानी..
कब थीं सुनी बंदर- बिल्ले की कहानी ,
न जाने फिर कब सुनूँगा माँ के होठों से लोरी ||
गुजर जाय जो ये बचपन.. न रह जायेगी जिन्दगानी ,
जुर्म ढ़ाएगी ये अब ये नाशपीटी ..जवानी !!!
उतर जायेगा कल को ये ऊबलता नशा .. आएगा ये बचपन बनके यादों में बराती !!!
लौटा दो हमारी वो अनमोल ... निशानी ....
कि न रोका जाता हमसे ये आँखों का पानी || "


#विवेक_कुमार

फरवरी 24, 2017
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 517

Comment

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Comment by Vivek Kumar on May 23, 2017 at 8:04pm

thanku #arif_sir

Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 2:06pm
प्रिय विवेक जी आदाब, रचना प्रक्रिया का बेहतरीन प्रयास । आपके अंदर काफी रतनाधर्मिता की संभावनाएँ है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 9:57am

आ. विवेक भाई . इस रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । किसी विधा विशेष मे रचना करें तो बेहतर होता ।

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