For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...जहर से भरी वादियों में हवा है

कश्मीर के हालातों को लेकर मन की उपज
122 122 122 122
दवा काम आये न लगती दुआ है
जहर से भरी वादियों में हवा है

यहाँ आदमी मुख़्तलिफ़ है खुदी से
न मुददा है कोई न ही माज़रा है

रुको मत लहू आखरी तक निचोड़ो
अभी जिस्म में जान बाकी जरा है

कहीं उड़ न जाये वफ़ा का परिंदा
अभी और मारो अभी अधमरा है

सरे राह घर है औ धरती बिछौना
भला मुफलिसों की जरुरत भी क्या है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 1285

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 29, 2017 at 10:22pm
आदरणीय शुक्ला जी..आपके अमूल्य समय एवं विस्तृत व्याख्या से बात पूर्णतया साफ हो चुकी है..एक नई जानकारी भी हासिल हुई..आखरी शेर में सरे राह उचित जान नहीं पड़ रहा..इसको 'सड़क उनका घर है' किया जाये तो कैसा रहेगा..कोशिश करता हूँ कुछ स्पष्टता ला सकूँ..आप बड़ों को पढता हूँ तो लगन आ ही जाती है..सादर
Comment by Ravi Shukla on April 27, 2017 at 6:07pm

आदरणीय बृजेश जी आपने हमारे मश्‍वरे पर ध्‍यान देकर प्रतिक्रिया दी आभार हमारे कहने का आशय इतना सा है कि उर्दू में जहर कहर शहर आदि का वज्न जह्र कह्र शह्र के अनुसार 21 में‍ लिया जाता है जब कि आम तौर पर बोलने में आपके लिखे अनुसार 12 के वज्न में कहा जाता है उसी अनुसार आपने मिसरा बांधा है । हमारा अनुरोध इतना ही है कि हमें जानकारी होनी चाहिये मिसरा आप कैसे बांधते है ये अापकी इच्‍छा है आदरणीय अनुराग जी की गजल के हवाले से एक लंबी चर्चा अभी कुछ दिन पहले ही मंच पर हुई है उसे पढें तो आपको शब्‍द और उसके प्रयोग को लेकर काफी जानकारी मिल सकती है ।

आखिरी शेर के सानी में आपने कहा है मुफलिसों की और जरूरत भी क्‍या है । और जहां तक हम समझ पा रहे है कि उला ये स्‍था‍पति कर रहा है सरे राह घर है अर्थात बीच राह में घर है धरती बिछौना है ।हमे लगता है कि सानी में व्‍यक्‍त कथन की पुष्टि ही उला मे हो भला और ( वो क्‍या है जो उपलब्‍ध है जिनके अलावा उन्‍हे और कुछ नहीं चाहिये ) जो कि आपके दोनो मिसरे आपस मेंसंबद्ध होकर कह नहीं पा रहे ।    शायद हमारी बात स्‍प्‍ष्‍ट हुई हाेगी

गजल के प्रति आपकी लगन देख कर बहुत खुशी हो रही है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 25, 2017 at 9:49pm
तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब शिज्जु 'शकूर' जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 6:27pm

सुधिजनों अपने विचार व्यक्त कर दिये हैं, मेरी तरफ से इस प्रयास के लिए बधाई लीजिए

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 25, 2017 at 4:33pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी हौसलाफजाई के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया..
Comment by नाथ सोनांचली on April 25, 2017 at 7:42am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, समसामयिक मुद्दों पर अच्छी गजल, शेष गुणीजन कह ही चुके है।मेरी इस उम्दा सृजन पर बधाई निवेदित हैं।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2017 at 7:40pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी आपकी सार्थक समीक्षा के लिए ह्रदय से अभिनन्दन वंदन करता हैं..आदरणीय बहुत गहराई से नहीं पढ़ा मैंने जहर का बज्न जैसे आम बोलचाल में लिखते बोलते हैं वैसा ही लिया है अब मैं थोड़ा असमंजस में हूँ..आप थोड़ा और स्पष्ट करेंगे तो मुझे आसानी होगी..चौथे शेर में आपका सुझाव भी अच्छा है..आखरी शेर की जान सानी में है आदरणीय..यहाँ मैंने दो बातें कहनी चाहीं हैं 1.रहबरों को लगता है सब ठीक 2.एक कटाक्ष आखिर देश को समाज को मुफलिसों की जरुरत क्या है..और स्पष्टता ला सकूँ प्रयास करूँगा..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2017 at 7:22pm
आदरणीय अनुराग जी सर्वप्रथम तो रचना पटल पे आपके अमूल्य समय के लिए ह्रदय से आभारी हूँ..आपके मनोहारी शब्दों से अतिप्रसन्ता का अनुभव हुआ..सुधार की गुंजाईश सदैव ही रहती है..दूसरे शेर में मेरे कहने का मतलब है..यहाँ आदमी को अपना पता नहीं है..अपने आप से ही अनिभिज्ञ है..फिर भी लड़े जा रहा है..जो घाटी में अराजकता फैलाते हैं वो अधिकांश नहीं जानते मुद्दा क्या है..बस पत्थर फेंक रहे है..वैसे मैं कोशिश करूँगा और स्पष्ट कह सकूँ..सादर
Comment by Ravi Shukla on April 24, 2017 at 6:43pm
आदरणीय ब्रजेश जी बढ़िया ग़ज़ल कही आप इ मुबारक बाद हाज़िर है ।

मतले में ज़ह्र का वजन 21 है (केवल जानकारी के लिए बता रहे हैं)

चौथे शेर के सानी में अगर " ज़रा और मारो अभी अधमरा है "किया जाए तो कैसा रहे । विनम्र सुझाव मात्र है।

आखिरी शेर में आपजो कहना चाह रहे हैं वो बात व्यक्त नहीं हो पा रही है थोड़ा स्पष्टता वांछित है ।।सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2017 at 5:06pm
आदरणीय सुशील सरना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service