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तरही गजल : दिन सुहाने हो गये राते सुहीनी हा गईं

2122   2122   2122   212

दिन सुहाने हो गए राते सुहानी हो गईं,
उनके आते ही बहारें जाफ़रानी हो गईं।

रंग और खुशबू की बातें अब कहानी हो गईं,
मुश्किलें लगता है जैसे जाविदानी हो गईं।

आसमाँ ने जब उफ़क पर चूम धरती को लिया,
कमसिनी को छोड़कर ऋतुएं सुहानी हो गईं।

बेकरारी आज जितनी है कभी पहले न थी,
आदतें भी सब्र की जैसे कहानी हो गईं।

मिहनतों को जब मिला तेरा सहारा ए ख़ुदा,
मुश्किलें भी मेरी घट कर दरमियानी हो गईं।

रेत का इक सैल आया सब उड़ाकर ले गया,
क़ैस की तन्हाइयाँ फिर से ख़ज़ानी हो गईं।

जल गया था तूर तेरे नूर की पाकर झलक,
ख़्वाहिशें मेरी जो थीं वो लनतरानी हो गईं'।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:46pm

आदरणीय तस्‍दीक साहब आपके दाेनो सुझाव के अनुसार हम फिर से सोचेंगे । रेगिस्‍तान में हवा चलने से रेत के टीलों पर पानी की लहरों की तरह ही उर्मियां बन जाती है आंधी तुफान गुजरने के बाद वहीं मंजर होता है हमारे दिमाग मे वहीं दृश्‍य था । ये सही है कि सैल और अाब से सैलाब की निस्‍बत ज्‍यदा सही है इस शेर पर कुछ विकल्‍प के बारे में सोचेंगे ।  अंतिम शेर में प्रसंग तो आप जान ही गये होंगे हमारा खुदा से मालिक से एक महबूब सा रिश्‍ता समझ आता है हमें । शिकायत करते है, रूठना ,मनाना सब है उसके प्रति संवाद में । कहीं किसी तरह का खौफ नहीं है । वहीं शिकायत है कि तुम जो चाहो तो  तूर को जला कर खाक कर दों और हम चाहे तो हमारी ख्‍वाहिश लंतरानी है । क्‍यों भाई ये कहा की बात हुई माना तुम सर्वशक्ति मान हो जो करो ठीक तो हम भी तो तुम्‍हारा ही अंश है जब सब कुछ तुम्‍हीं हो तो फिर हम तुमसे कहां अलग हुए । कुछ इसी तरह की मीठी नोक झोंक का मन था इस शेर में पर आप तक बात नहीं पंहुची तो शेर कामयाब नहीं हो पाया शायद । आशा है हम अपनी बात कह सके है जब ईश्‍वर से अपने संबधों को शब्‍दों में व्‍यक्‍त करना हो तो बात गडमड हो जाती है गूगें का गुड जैसा हो जाता है ।

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:35pm

अादरणीय समर साहब आपकी हौसलाआफजाई काक बहुत बहुत शुक्रिया । आर्शीवाद बनाये रखें । सादर  

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:34pm

आदरणीय महेंन्‍द्र जी गजल को आपने समय देकर पसंद किया बहुत बहुत धन्‍यवाद

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:33pm

आदरणीय सतविन्‍द्र जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:33pm

आदरणीय मोहम्‍मद आरिफ साहब गजल में शिरकत करने का शुक्रिया

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:32pm

आदरणीय आशीष जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:32pm

आदरणीय बैज नाथ जी गजल पसंद आई बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:31pm

आदरणीय नीलेश जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Mahendra Kumar on April 4, 2017 at 8:53am
आदरणीय रवि सर, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 1, 2017 at 4:07pm
आदरणीय रवि सर,उम्दा गजल कही है अपने।शेर दर शेर मुबारकबाद कबूल कीजिए!

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