For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा- समझौता- ये भी तो प्यार है-

एक स्टोर के अंदर हाथ में ब्लैक चेक्स शर्ट लेकर खड़ी ऋषिता अमन को दिखाकर पूछ रही थी- "ये रहा तुम्हारा मन पसंद कलर" ! अमन शर्ट को देखते हुए - "अरे इसकी क्या जरुरत थी ?, " हर बात की कोई जरुरत हो जरूरी भी नही "- अमन के चेहरे को देखकर मुस्कुराती हुई वो जवाब देती है! उसका अंतर्मन आज दुखी है परंतु अमन को कैसे बताये वो खुद को तोड़ देने वाली बात की "अब हमें बिछड़ना होगा", अब वक़्त आ गया है हमारे प्रेम को उसकी मंजिल तक पहुँचाने का"! प्रेम तो होता ही ऐसा  है या तो मिलकर मुस्कुराते है या बिछड़कर मुरझाते है! न प्रेम कमजोर होता है न प्रेम प्रेमी !
अमन घर आते आते समझ चूका था के आज कुछ है जो हमें डरा रहा है, नजदीकियां बढ़ रही है लेकिन अनजाने भय का एक हिस्सा हमारे बीच आ ठहरा था आज ! वो ऋषिता से पूछता है - तुम कुछ छिपा रही हो !" "नही तो "- ऋषिता न जाने क्यू ये बोल जाती है उसे भी नही मालूम! "मेरा विश्वास और प्रेम इतना भी कमजोर नही की तुम्हारी अनकही परेशानी ना समझ पाउ!" बता दो जो भी है, खामोशिया अक्सर गलतफहमियां ला देती है - अमन ऋषिता का हाथ थामे कह रहा था!" " वक़्त आ गया है अब एक समझौता करने का", मुझे जाना होगा, हमारे ३ वर्ष के प्रेम को यही से एक नयी और दुखभरी राह देकर"- ऋषिता आँसूऔ को रोकने की नाकाम कोशिश करती हुई बोल रही थी! अमन- मगर क्यू ?, शायद तुम भूल गए हो मेने बताया था के मेरी कुछ मजबूरिया हमे शायद मिलने न दे उम्र भर के लिए"- ऋषिता के आंसू अब अविरल बह रहे थे ! " लेकिन बात क्या है?- अमन बोलता है, ऋषिता- मुझे घर जाना होगा, रिश्ता तय कर दिया उन्होंने मेरा, हमारा साथ यही तक लिखा था तकदीर ने, ,में अपने प्रेम को अपने माता पिता की ख़ुशी को रौंदकर नही पाना चाहती , और चाहते हुए भी उन्हें बता नही सकती!" अब समझौता ही एक राह बची है, क्युके हम इतने कमजोर नही की जीना छोड़ दे!" अमन बिखरा सा महसूस कर रहा था , वो टूट रहा था हर धड़कन के साथ लेकिन उसकी ख़ुशी तो ऋषिता की मुस्कान थी- " में जानता हु, तुम्हे मेरी कितनी फिक्र है, लेकिन तुम मेरी चिंता मत करो, वो करो जो तुम्हे सही लगे, जो तुम्हारे लिए सही हो ! मेरा प्रेम अगर तुम्हे जिंदगी भर के लिए तनाव दे, तुम्हारे पैरो की बेड़िया बन जाये तो किस काम का इस प्रेम ! में हिम्मत था तुम्हारी और वही रहना चाहता !

इससे बेहतर कुछ नही की " खोकर भी हमेशा के लिए पा लूंगा तुम्हे !"
ऋषिता उसके गले लगके अपने आंसुओ के गुबार को आजाद कर चुकी थी! ख़ामोशी और प्रेम का पवित्र अहसास हवाओ में बाह रहा था! अजीब है प्रेम की दास्ताँ भी जखम लेकर भी ख़ुशी ढूंढ ही ली! बिछड़ कर भी गहरे बसे थे एक दूसरे में !

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on April 4, 2017 at 8:50am
आदरणीय रवि जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आपकी रचना के सम्बन्ध में आदरणीय सतविंद्र जी ने जो बिन्दु रखे हैं, उनसे मैं भी सहमत हूँ। इसमें मैं एक चीज और जोड़ना चाहूँगा कि लघुकथा की एक प्रमुख विशेषता उसका चौंकाने वाला अन्त होती है जो यहाँ पर पूरी तरह से नदारद है। आशा है आप इन चीजों का भविष्य में ध्यान रखेंगे। मेरी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएँ। सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 1, 2017 at 5:42pm
आदरणीय रवि शर्मा जी,हार्दिक बधाई इस कथा के लिए।पूर्ण विराम(।) और विस्मयादिबोधक(!) का या किसी भी विराम चिह्न का प्रयोग ,उसके महत्व और मायने के अनुसार ही होना चाहिए।आप की इस कथा के कथानक में नवीनता तो नहीं है,कई फिल्मों में अथवा टीवी सीरियल में इस प्रकार की अवस्थाएँ नजर आ जाती हैं।आअपकी यह रचना किसी उपन्यास के एक महीन से हिस्से जैसी लगी।कईं शब्दों की वर्तनी गलत है,हो सकता है टँकन त्रुटि हुई हो।//अजीब है प्रेम की दास्ताँ भी जखम लेकर भी ख़ुशी ढूंढ ही ली! बिछड़ कर भी गहरे बसे थे एक दूसरे में !// इस वाक्य में सीधे तौर पर लेखक का प्रवेश प्रतीत हो रहा है कथा में जो,लघुकथा विधा में ठीक नहीं माना जाता।यह मेरी पाठकीय प्रतक्रिया ही है।मैं गलत भी हो सकता हूँ।सादर
Comment by Ravi Sharma on March 31, 2017 at 9:50pm
आदाब बहुत बहुत आभार Samar Kabeer ji ... आपके अच्छे शब्द हि प्रेरित करेगें बेहतर करने के लिये
Comment by Samar kabeer on March 31, 2017 at 9:32pm
जनाब रवि शर्मा जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service