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आज सुनो मैं तुमको यारों, सच्ची बात बताता हूँ |
झुग्गी में रहने वालों की, इक तस्वीर दिखाता हूँ ||
दूषित पानी हवा विषैली, जैसी कई निशानी है |
ये प्यासे नित कूँआ खोदें, इनकी यही कहानी है |1|

कोई बच्चा फेंका जूठन, जहाँ प्यार से खाता है |
कोई बचपन से ही घर का, सारा बोझ उठाता है ||
यहाँ घरों में हर बालक का, जन्म कर्ज में होता है |
उम्र कर्ज में ही कटती है, कर्ज लिए ही सोता है |2|

कोई नन्ही बुधिया मुनिया, नग्न बदन दिख जाती है |
कोई बुढ़िया बिन इलाज के, घर में ही मर जाती है ||
नन्हे बच्चे जहाँ स्कूल का, मुँह तक देख न पाते है |
अपने अधिकारों से वंचित, अनपढ़ ही रह जाते है |3|

वोट समय ही नेताओं को, झुग्गी वाले भाते है |
वादों की भरमार लिए फिर, इनके दर वो आते है |
जूझ रहे इनके जीवन को, बहुत लोग फिल्माते है ||
दिखा तमाशा दुनिया को फिर, वो ऑस्कर पा जाते है |4|

कहीं घरों में इक रोटी पर, छीना झपटी होती है ||
और कहीं बस बिन खाये ही, बेबस माता सोती है |
लाचार पिता जब बच्चों को, स्वप्न दिखा बहलाता है |
तब इनके सब अरमानों को, बुलडोजर दहलाता है |5|

देख दुर्दशा कहता हूँ मैं, नही मिली आजादी है |
सब झूठे ही स्वप्न दिखाते पहन लिया जो खादी है ||
नालों में सड़ने की आखिर, इनकी क्यों मजबूरी है |
विकसित इक समाज से आखिर, क्यों कोसो की दूरी है |6|

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 12, 2017 at 5:40pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी   आपकी रचना मुझे बेहद भाई 

वोट समय ही नेताओं को, झुग्गी वाले भाते है |
वादों की भरमार लिए फिर, इनके दर वो आते है |
जूझ रहे इनके जीवन को, बहुत लोग फिल्माते है ||
फिर दिखा तमाशा दुनिया को, वो ऑस्कर पा जाते ..............ये पंक्तियाँ मुझे बेहद भाईं 

सब झूठे ही स्वप्न दिखाते पहन लिया जो खादी है ||....पता नहीं क्यों यहाँ मैं थोडा उलझन में हूँ 

Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:25pm
मुझे अत्यंत खेद है कि इस बार के महाउत्सव में प्रतिभाग न कर सका क्योकि गॉव में लगातार नेटवर्क रुलाता रहा और छह कर भी मै कुछ न कर ष्क। प्रारम्भ की दो चार रचनाओं को ही पढ़ भी सका। आज पुनः जब नेटवर्क एरिया में हूँ तब इस रचना को पोस्ट कर रहा हूँ।

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