For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो", बालों में अंगुलियां फिराते हुए उसने कहा|
"हूँ", कहते हुए वह खड़ी होने लगी|
"थोड़ी देर और बैठो ना", उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया| वह वापस बिस्तर पर बैठ गयी|
"सच में तुमको देखे बिना चैन नहीं मिलता", एक बार फिर उसने उसका हाथ पकड़ा|
वह उसको लगभग अनदेखा करते हुए बैठी रही| थोड़ी देर बाद वह फिर से उठने लगी तो उसने कहा "तुम जवाब क्यों नहीं देती, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता?
"लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी", उसने एक गहरी नजर डाली और खड़ी हो गयी|
उसको बुरा लगा, सबके बराबर बना दिया उसने|
"मैं बाकियों जैसा नहीं हूँ, तुमसे एक रिश्ता सा जुड़ गया है अब", और भी कुछ बोलना चाहता था वह लेकिन उसकी नजर से सामना होते ही जैसे शब्दों ने उसका साथ छोड़ दिया|
"मुझे यहाँ लाने वाला भी मुझसे बहुत गहरा रिश्ता रखता था, आगे से रिश्ते की बात मत कहना"|
वह दरवाजा खोलकर बाहर निकल गयी, उसने भी चुपचाप कपडे पहने और निकल गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on January 19, 2017 at 3:15pm

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति. बधाई.

Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 2:15pm
जनाब विनय कुमार जी आदाब,हमेशा की तरह बहुत उम्दा लघुकथा लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 2:07pm

बहुत बहुत आभार आ मिथिलेश वामनकरजी इस टिपण्णी के लिए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 1:35pm
आदरणीय विनय जी, पुरुष प्रधान समाज में नारी की दुर्गति होती है तो उसका रिश्तों से विश्वास उठना वाजिब है। आपने बहुत ही कसावट के साथ प्रस्तुति को शाब्दिक किया है। इस सफल लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service