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गज़ल --है गलतियाँ रहस्य, बहानों ने ले लिया

काफिया :ओं ; रदीफ़: ने ले लिया

बह्र:  २२१ २१२१ १२२१ २१२

बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया

है गलतियाँ रहस्य, बहानों ने ले लिया |१

वो बात जो थी कैद तेरे दिल के जेल में

आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |२

चुपके से निकले घर से, सनम ने बताया था

वो जिंदगी का राज़ निशानों ने ले लिया |३

धरती को चाँदनी ने बनायीं मनोरमा

विश्वास नेकनाम सितारों ने ले लिया |४

मिलता है सुब्ह शाम समय रिक्त अब नहीं  

पूरा दिवस व रात्रि किताबों ने ले लिया |५

   

बादल बरसते पौष, हुए फायदा बहुत

आनंद सब उधार फिजाओं ने ले लिया |६

सामान थे अनेक प्रसाधन के थे सकल

चारो तरफ से घेर हसीनों ने ले लिया |७

आकाश है पलंग बिछाना कपास है

नीरद उड़ान तेज हवाओं ने ले लिया |८

वादा बहुत किया है कुशल क्षेम आयगा

सबका है साथ हाथ बयानों ने ले लिया |

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2016 at 4:52pm

आदरणीय काली पद भाई , ग़ज़ल के प्रयास के लिये हार्दिक बधाइयाँ आपको । मै आ. समर भाई और मिथिलेश भाई जी दोनों की बातों से सहमत हूँ , भाषा और व्याकरण की कमज़ोरी ग़ज़ल को कमज़ोर कर देती है . कृपया खयाल कीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2016 at 11:46pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी, बह्र तो आपने खूब साधी है, अब केवल कथ्य पर अभ्यास चाहती है ग़ज़ल. ग़ज़ल का मिसरा-ए-उला पढ़ने के बाद मिसरा-ए-सानी पढने की बेताबी हो और मिसरा-ए-सानी पढ़ते ही वाह निकले, कुछ ऐसे मिसरों में ग़ज़ल को बदलना होगा. बहरहाल इस प्रयास पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें. सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 20, 2016 at 1:43pm

आ समीर कबीर जी आदाब ,ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए और अपनी राय देने के लिए शुक्रिया |

Comment by Samar kabeer on December 18, 2016 at 5:34pm
जनाब कालीपद प्रसाद मंडल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर में 'जेल'स्त्रीलिंग है ।
ग़ज़ल बह्र में कहना ही कमाल नहीं होता,कथ्य,व्याकरन और बहुत सी बातों का ख़याल रखना होता है,इन बिंदुओं पर ग़ज़ल बहुत कमज़ोर लगी ।

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